________________
(Jiva) और उनका स्वरूप तत्त्व विद्या (Ontology), विश्वविद्या (Kosomology) दृश्य और अदृश्य जीवों का स्वरूप जीवविद्या (Biology) बताया। चैतन्यरूप आत्मा का उत्तरोत्तर आध्यात्मिक विकासस्वरूप मानसशास्त्र (Psychology) आदि विद्याओं को उन्होंने रचनातमक रूप देकर जनता के सम्मुख उपस्थित किया। इसप्रकार वीर केवल साधु अथवा तपस्वी ही नहीं थे, बल्कि वे प्रकृति के अभ्यासक थे और उन्होंने विद्वत्तापूर्ण निर्णय दिया।
-डॉ. अनेस्ट लायमेन जर्मनी . 0 जैनधर्म की विशेषता : मैं अपने देशवासियों को दिखलाऊँगा कि कैसे उत्तम तत्त्व
और विचार जैनधर्म में हैं। जैन साहित्य बौद्धों की अपेक्षा बहुत ही बढ़िया है। मैं जितना-जितना अधिक जैनधर्म व जैन साहित्य-ज्ञान प्राप्त करता जाता हूँ, उतना-उतना ही मैं उनको अधिक प्यार करता हूँ।
-जर्मनी के महान् विद्वान् डॉ. जोन्ह सहर्टेल . -(आधारस्रोत : विश्वशांति के अग्रदूत वर्द्धमान महावीर, . सं.-श्री दिगम्बर दास जैन, प्र.सं. 1954ई.)
तीन हजार से भी अधिक बोलियां बोलते हैं आदिवासी देश के विभिन्न भागों में बसे आदिवासी क्षेत्रों में तीन हजार से भी अधिक बोलियां बोली जाती हैं। आदिवासियों द्वारा बोली जाने वाली यह बोलियां प्रकृति के बेहद करीब हैं। इसलिए इन बोलियों के कई शब्दों को जंगली जानवर तक समझते हैं। कई आदिवासी तो जानवरों की आवाज से ही समझ लेते हैं कि अमुक जानवर अपने दल से बिछड़ गया है या कोई जानवर बीमार है, व किसी पीड़ा की चपेट में है।
'जनजाति-कार्य-मंत्रालय' ने इन आदिवासी बोलियों को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया है और विभिन्न राज्यों में स्थित 14 आदिवासी-अनुसंधान संस्थान इस काम में जुट गये हैं तथा अनुसंधान-कार्य करके इन भाषाओं की शब्दावलियों को संरक्षित कर रही है। राजस्थान के 'मानिकलाल आदिम-जाति शोध-संस्थान' ने आदिवासियों की भाषा व संस्कृति पर 50,000 से अधिक पुस्तकें संग्रहीत की हैं। इस पुस्तकालय में अभिलेखों के अतिरिक्त देश की विभिन्न जनजातियों के बारे में भी सूचनाएँ उपलब्ध हैं। इसे अब कम्प्यूटरीकृत करने के प्रयास चल रहे हैं। इसीप्रकार केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, असम, तमिलनाडु आदि राज्यों में भी जनजातियों की मौखिक-परम्पराओं को भी अभिलेखों के माध्यम से संरक्षित किया जा रहा है। इस दिशा में शब्दकोश, संदर्भ-ग्रंथ, व्याकरण-पुस्तकें एवं बोलचाल के लिए निर्देशिका प्रकाशित की गई है, लेकिन ये अनुसंधान अभी नाकाफी हैं। 'महाराष्ट्र आदिवासी अनुसंधान संस्थान' द्वारा फील्ड में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए बोलचाल की निर्देशिका तैयार की | गई है।
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
149