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________________ (1) गोपाचल-दुर्ग की उत्तुंगकाय आदिनाथ-तीर्थंकर की मूर्ति वि.सं. 1497 में राजा डूंगरसिंह के राज्य में गोपाचल-दुर्ग में मुद्गल गोत्रीय संघपति कमलसिंह ने __निर्मित कराकर महाकवि रइधू द्वारा प्रतिष्ठित कराई थी। यह मूर्ति 58 फीट से भी ऊँची है। सम्राट् बाबर ने इसे अदिवा (आदिनाथ भगवान्) कहकर इसे भ्रमवश 40 फीट ऊँची बतलाया था तथा इसे तोड़ने को आदेश दिया था। (2) मूर्ति-लेख में जो ‘कांचीसंघ', 'मायूरान्वय' एवं 'रधू' पाठ पढ़े गये हैं, वे भ्रामक हैं। वे 'सम्मत्तगुणणिहाणकव्व' की प्रशस्ति के अनुसार क्रमश: काष्ठासंघ, माथुरान्वय एवं पण्डित रइधू है। (3) 'सम्मत्तगुणणिहाण-कव्व' की प्रशस्ति में साहु भोपा के चार पुत्र ही बताये गए हैं, किन्तु मूर्तिलेख से विदित होता है कि उनका 'धनपाल' नामक एक और पुत्र था। ___ जन्मक्रमानुसार 'धनपाल' चतुर्थ-पुत्र था एवं 'पाल्हा' पांचवाँ-पुत्र। (4) मूर्तिलेख में जो “........ज्येष्ठ पुत्र भधायिपति कौल ।। भ-भार्या" पढ़ा गया है. वह कौल 'वस्तुत:' 'कमलसिंह' होना चाहिए। (5) मूर्तिलेख में पठित ". . . भार्या ज्येष्ठस्त्री सरसुती पुत्र मल्लिदास द्वितीय भार्या साध्वीसरा पुत्र चन्द्रपाल । क्षमप्तीपुत्र द्वितीय साधु श्रीभोजराजा भार्या देवस्य पुत्र पूर्णपाल. . ." लेख का यह उल्लेख कुछ असामंजस्यपूर्ण है। क्योंकि प्रशस्ति के अनुसार यह बिलकुल स्पष्ट है कि कमलसिंह संघवी की दो पत्नियाँ थी—सरस्वती एवं ईश्वरी। इनमें से केवल ईश्वरी को मल्लिदास नामक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। प्रशस्ति के अनुसार चन्द्रसेन एवं पुण्यपाल ये दोनों कमलसिंह के छोटे भाई भोजराज के पुत्र थे। (6) मूर्तिलेख में ". . . . काला सदा प्रणमति" पाठ पढ़ा गया, वह भी भ्रामक है। वस्तुत: वह “कमलसिंह: सदा प्रणमति" पाठ होना चाहिए। (7) कमलसिंह अग्रवाल-जाति के मुद्गल-गोत्र में उत्पन्न हुआ था। (8) रइधू-साहित्य की प्रशस्तियों से वह विदित होता है कि कमलसिंह संघवी का परिवार तीर्थभक्त एवं साहित्यरसिक था। उसके पिता खेमसिंह ने रइधू को आश्रय प्रदान कर उसे 'सिद्धतत्थसार' नामक एक विशाल सिद्धान्त-ग्रन्थ (प्राकृत गाथाबद्ध) लिखने की प्रेरणा की थी। स्वयं कमलसिंह ने भी उसे 'सम्मत्तगुणणिहाणकव्व' के लिखने की प्रेरणा की थी। दूसरा मूर्ति-निर्माता था— खेल्हा ब्रह्मचारी, जो हिसार का निवासी था तथा जिसका विवाह कुरुक्षेत्र के निवासी सहजा साहु की पौत्री एवं तेजसाहु की पुत्री क्षेमी के साथ हुआ था। सन्तान-लाभ ने होने से इसने अपने भतीजे हेमा को गृहस्थी का भार सौंपकर ब्रह्मचर्य धारण कर लिया था तथा उसी स्थिति में उसने गोपाचल-दुर्ग में 00 26 प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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