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________________ जिनमूर्ति-निर्माताओं का श्रद्धापूर्वक स्मरण किया है, इनमें से संघवी कमलसिंह, खेल्हा ब्रह्मचारी, असपति साहू, संघपति नेमदास तथा सहदेव संघपति के नाम प्रमुख हैं। रइधू ने संघवी कमलसिंह को 'गोपाचल का तीर्थ-निर्माता' कहा है, जो उपयुक्त ही है। गोपाचल-दुर्ग की लगभग 58 फीट से भी ऊँची आदिनाथ की मूर्ति (सम्राट् बाबर ने उसकी ऊँचाई देखकर महान् आश्चर्य व्यक्त किया था तथा भ्रमवश उसे 40 फीट ऊँची बतलाया था) का निर्माता यही कमलसिंह संघवी था तथा उसकी प्रतिष्ठा का कार्य रइधू ने ही सम्पन्न कराया था। आंधी, पानी की बौछार एवं ऋतुओं के विभिन्न प्रभावों तथा अन्य अज्ञातकारणों से वह मूर्तिलेख कुछ अस्पष्ट हो गया है। अत: प्रयास करने पर भी वह कुछ भ्रमात्मक रूप से पढ़ा गया है, जो निम्न प्रकार है : "श्री आदिनाथाय नमः ।। संवत् 1497 वर्ष वैशाख. . . . . . 7 शुक्रे, पुनर्वसु नक्षत्र की गोपाचलदुर्ग महाराजाधिराज राजा श्री डूंग. . . सवर्तमानों श्री कांचीसंघे मायूरान्वयो पुष्करगणभट्टारक श्री गणकीर्तिदेव तत्पदे यत्य: कीर्तिदेवा प्रतिष्ठाचार्य श्री पंडितरधू तेपं । आमाये अग्रोतवंशे मोद्गलगोत्रा सा धुरात्मा तस्य पुत्र साधु भोपा तस्य भार्या नान्ही। पुत्र प्रथम साधु क्षेमसी द्वितीय साधु महाराजा तृतीय असरात चतुर्थ धनपाल पंचम साधु पालका। साधु क्षेमसी। भार्या नोरादेवी पुत्र-ज्येष्ठ पुत्र भधायिपति कौल भार्या च ज्येष्ठ स्त्री सरसुती मल्लिदास द्वितीय भार्या साध्वीसरा पुत्र चन्द्रपाल। क्षेमसी पुत्र द्वितीय साधु श्री भोजराजा भार्या देवस्य पुत्र पूर्णपाल। ऐतषां मध्ये श्री।। त्यादिजिनसंघाधिपति काला सदा प्रणमति।" रइधू ने अपनी एक प्रशस्ति में उक्त आदिनाथ की मूर्ति के निर्माण की चर्चा इसप्रकार की है : __ "आदीश्वरादि: प्रतिमा विशुद्ध: संकारयित्वा निजवित्तशक्त्या। नित्य प्रतिष्ठाप्य समर्चते य: नन्दतात्सो कमलाभिधो हि ।।" उक्त लेख के भ्रमात्मक-पाठों का संशोधन सम्मत्तगुणणिहाणकव्व' की प्रशस्ति के आलोक में सहजतापूर्वक किया जा सकता है, जो संक्षेप में निम्नप्रकार है : "मूर्ति-निर्माता-कमलसिंह संघवी की वंशावली (मूर्ति-लेखानुसार) साहु भोपा- (पत्नी णाल्ही) खेमसिंह (पत्नी नोरादेवी) महाराज असरज धनपाल पाल्हा संघपति कमलसिंह (प्रथम पत्नी सरस्वती) भोजराज (पत्नी देवकी) मल्लिदास, पुण्यपाल (दूसरी पत्नी ईश्वरी) चन्द्रसेन प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 0025
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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