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________________ प्राकृतविद्या-परिवार की ओर से दिवंगत भव्यात्मा को सुगतिगमन, बोधिलाभ एवं शीघ्रनिर्वाण- प्राप्ति की मंगलकामना के साथ विनम्र श्रद्धासुमन समर्पित हैं। –सम्पादक ** - अति आवश्यक सूचना प्राकृतविद्या का आगामी प्रकाश्य-अंक (वर्ष 15, अंक 2, जुलाई-सितम्बर 2003) इस बार 'दशलक्षण-महापर्व-विशेषांक के रूप में प्रकाशित होगा। सभी विद्वान् लेखकों एवं लेखिकाओं से विनम्र निवेदन है कि वे ‘दशलक्षण-महापर्व' के विविध आयामों पर अपने सारगर्भित शोधपरक-आलेख यथाशीघ्र 'प्राकृतविद्या' कार्यालय में प्रकाशनार्थ भेजें। कृपया इतना ध्यान रखें, कि आलेख का आकार प्राकृतविद्या के प्रकाशित पृष्ठों के अनुसार अधिकतम पाँच-छह पृष्ठों का हो। मौलिक एवं अप्रकाशित महत्त्वपूर्ण लेखों को वरीयता दी जाएगी। आपके उदार सहयोग की हमें आतुरता से प्रतीक्षा है। -सम्पादक शास्त्र के लिए अपात्र व्यक्ति 'आलस्यो मंदबुद्धिश्च, सुखिनो व्याधिपीडिताः। . निद्रालुः कामकुश्चेति षडैते शास्त्रवर्जिताः।। -(आचार्य माघनंदि, शास्त्रसार समुच्चय) अर्थ :- 1. आलसी व्यक्ति, 2. मंदबुद्धिवाला, 3. सुखाभिलाषी (शारीरिक सुख चाहनेवाला), 4. बीमारी से पीड़ित, 5. निद्रा के आवेगयुक्त (जिसे तेज नींद आ रही हो) तथा 6. कामवासना से पीड़ित व्यक्ति —ये छह व्यक्ति शास्त्र के लिए वर्जित हैं; अर्थात् शास्त्र-स्वाध्याय के पात्र नहीं हैं। . 00 108 प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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