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________________ हुकमचन्द जी भारिल्ल, श्री महावीरजी अतिशय क्षेत्र के अध्यक्ष श्री नरेश कुमार जी सेठी, आर.के. मार्बल्स के निर्देशक श्रीमान् अशोक कुमार जी पाटनी किशनगढ़, भारत जैन महामण्डल के अध्यक्ष श्री सम्पतकुमार जी गदैया, भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् के संरक्षक डॉ. देवेन्द्रकुमार जी शास्त्री नीमच, अतिशय क्षेत्र पदमपुरा के मंत्री श्रीमान् ज्ञानचन्द जी झांझरी, राजस्थान जैनसभा के अध्यक्ष श्रीमान् महेन्द्र कुमारजी पाटनी, प्रख्यात पत्रकार श्री मिलापचन्द जी डण्डिया आदि अनेक महानुभावों ने पाटनी जी के धार्मिक और सामाजिक योगदानों का स्मरण करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर उनके भाई सौभाग्यमलजी पाटनी ने उनकी स्मृति में 10 लाख रुपये का पारमार्थिक ट्रस्ट बनाने की घोषणा की। __प्राकृतविद्या-परिवार की ओर से दिवंगत भव्यात्मा को सुगतिगमन, बोधिलाभ एवं शीघ्रनिर्वाणप्राप्ति की मंगलकामना के साथ विनम्र श्रद्धासुमन समर्पित हैं। -सम्पादक ** - 104 वर्षीय विद्वान् चुन्नीलाल जी शास्त्री दिवंगत त्रिशताब्दिदर्शी श्रद्धेय श्री पं. चुन्नीलाल जी शास्त्री (संरक्षक श्री अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् एवं परवार महासभा) 9 मार्च 1899 को जन्में और और वसंत पंचमी गुरुवार दिनांक 6 फरवरी 2003, अर्द्धरात्रि 12.15 पर 104 वर्ष की आयु में समता पूर्वक देह-त्याग कर महा-प्रयाण किया। ___ अंत समय में मुनिश्री निर्वाणसागर जी ने घर जाकर उन्हें अनेक बार सम्बोधा। फलस्वरूप आपने समताभाव पूर्वक पद्मासन-अवस्था में नश्वर देह का परित्याग किया। प्राकृतविद्या-परिवार की ओर से दिवंगत भव्यात्मा को सुगतिगमन, बोधिलाभ एवं शीघ्रनिर्वाण- प्राप्ति की मंगलकामना के साथ विनम्र श्रद्धासुमन समर्पित हैं। . -सम्पादक ** बाल ब्रह्मचारी पं. माणिकचन्द्र जी भीसीकर गुरुजी का सल्लेखनापूर्वक देह-विसर्जन ____ दिगम्बर जैनसमाज के सुप्रतिष्ठित विद्वान् एवं बाहुबलि ब्रह्मचर्याश्रम एवं विद्यापीठ कुम्भोज-बाहुबलि के वर्तमान संचालक परमसम्मान्य विद्वद्वर्य ब्रह्मचारी माणिकचन्द्र जी जयवंतसा भीसीकर जी ने दिनांक 20 अप्रैल 2003 को प्रात: 5.15 बजे सल्लेखना विधिपूर्वक 87 वर्ष की अवस्था में देहत्याग किया। पूज्य आचार्य समन्तभद्र जी के सुशिष्य श्री भीसीकर जी ने ब्र. माणिकचन्द्र भीसीकर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए लाखों विद्यार्थियों को ज्ञानदान एवं जैनत्व के संस्कार समर्पित किए। आपने 'सन्मति' नामक प्रतिष्ठित मराठी पत्रिका का सम्पादन भी किया और अनेकों पुस्तकें, लेख एवं साहित्यिक रचनाएँ आपकी लेखनी से प्रसूत हुईं। प्राकृत एवं संस्कृत भाषाएँ भी आपके लिए मातृभाषावत् थीं, तथा जैन-आगमों का मूलत: पाठ और विवेचन करने में आपकी अद्भुत क्षमता थी।
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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