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________________ “तीर्थाद् भवन्त: किल तत् भवद्भ्यो, मिथ्यो द्वयेषामिति हेतुभावः । अनादिसन्तान-कृतावतार-श्चकास्ति बीजांकुरवत् किलायम् ।।" __ -(आचार्य अमृतचंद्र, लघुत्त्वस्फोट, पृष्ठ 67) अर्थ :- हे तीर्थकर ! (वृषभदेव आदि) जिस तीर्थ (धर्म) से आप हुए हैं, वह तीर्थ (धर्म) भी आपसे प्रकट हुआ है। आपश्री का और धर्म-तीर्थ का इसप्रकार से परस्पर में यह कार्य और कारण या हेतु-हेतुमद्भाव है। और यह निश्चय से अनादि संतानपरम्परारूप से बीजांकुर की तरह चमकता रहता है। श्रुत-परम्परा के विषय में आचार्य गुणभद्र की भविष्यवाणी "श्रुतं तपोभृतामेषां प्रणेश्यति परम्परा। शेषैरपि श्रुतज्ञानस्यैकदेशस्तपोधनैः ।। जिनसेनानगैर्वीरसेनैः प्राप्तमहर्द्धिभिः । समाप्ते दुःषमाया: प्राक् प्रायशो वर्तयिष्यते ।।" -(आचार्य गुणभद्र. उत्तरपुराण, 76-527-28) अर्थ :-- यद्यपि तप:शील श्रुत-ज्ञानियों की परम्परा मिट जायेगी; पर फिर भी प्रात:स्मरणीय आचार्य वीरसेन तथा तदनुगामी आचार्य जिनसेन प्रभृति श्रुतवैभव के धनी, तपस्वी महाश्रमणों द्वारा श्रुत का एकदेश अंश दु:षम-पंचमकाल की समाप्ति से पूर्व तक संवर्तित रहेगा ही। "तव जिनशासनविभवो, जयति कलावपि गुणानुशासनविभवः । दोषकशासनविभवः, स्तुवन्ति चैनं प्रभा सुशासनविभवः ।।" __--- (आचार्य समन्तभद्र, स्वयम्भूस्तोत्र) अर्थात् हे तीर्थकर महावीर भगवन् ! आपके जैनशासन की राग-द्वेषादि दोषों को दूर, करनेवाले आपके गुणानुशासन की परम-महिमा इस कलिकाल में भी जयवंत हो रही है, और जिनके ज्ञान का माहात्म्य सर्वत्र आज भी प्रभावान है, ऐसे तीर्थकर भगवान् महावीर के निकटवर्ती गौतम महर्षि गणधरादि मनस्वी-पुरुष भी आपके इस महिमामय सुशासन (जैनशासन) अहिंसा की स्तुति करते हैं। ___ जैन-सामान्य में श्रुत-परम्परा के प्रति जिज्ञासा एवं अनन्य-आदरभाव जागृत करने की दृष्टि से आचार्य लिखते हैं “ये यजन्ते श्रुतं भक्त्या, ते यजन्तेऽञ्जसा जिनम् । न किंचिन्तरं प्राहराप्ता हि श्रुत-देवयोः ।।" अर्थ :- जो श्रुत (आगम या द्वादशांगी जिनवाणी) की भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं, वे वस्तुत: आप्त तीर्थकर ऋषभदेव आदि की ही पूजन करते हैं। क्योंकि केवली सर्वज्ञ-भगवान् ने परमागम 'श्रुत' और वीतरागी जिनेन्द्र परमात्मा (का पूजन-अर्चन प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 009
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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