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________________ दीक्षा के विपरीत विनाश की ओर ले जानेवाली है। विद्वान्-विवेकीजन विचार करें। ____ समग्ररूप से आलेख बिना सहजमान्य प्रमाण एवं इतिहास-भूगोल से अपुष्ट मानसिक व्यायायाम है, जो अपनी पूर्व-स्वीकृत धारणा के प्रतिकूल है। प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जी जैन :- ज्ञानवृद्ध-वयोवृद्ध प्राचार्य जी की विचारणा के प्रतिकूल कुछ भी लिखना दु:साहस ही होगा। वे और उनकी भाषा मोहक है, फिर भी अभिप्रायजन्य विरोधाभास वे चाहकर भी दूर नहीं कर सके। कर भी नहीं सकते, परिस्थितियाँ कुछ ऐसी ही हैं। __जब कोई वस्तु खो जाती है, तभी उसकी खोज होती है। खोज कौन करे, यह तो खोजकर्ता की रुचि पर निर्भर करता है। सही खोज वही कर सकता है, जो निष्पक्ष, आग्रहहीन, अहंकारहीन और मानसिकरूप से ईमानदार हो। वैशाली, कुण्डपुर आदि आततायियों/अपनों के द्वारा अनेकों बार ध्वस्त होकर जमींदोज हो गये। वे इतिहास या आगम के विषय हैं. भूगोल के नहीं। इसीकारण यथास्थान उनकी खोज हुई। अनेक स्थान पर नये नगर/नई बस्तियाँ बन गयीं। ऐसी स्थिति में इस तर्क का कोई मूल्य नहीं होता कि किस नाम से क्या नाम बनता है या बना। यहाँ प्रकरण नाम मिटाकर नये नाम लिखने का है। हमारी खोज यह है कि कौन-सा नया-नाम पुराने-स्थल का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इसी दृष्टि से वासोकुण्ड, कुण्डपुर माना गया और बसाड़-वैशाली। खोज में क्या भूल हुई, यह सप्रमाण सिद्ध करना चाहिये। बिना भूल बताये खोज को गलत सिद्ध कैसे करें। कुण्डपुर की खोज 'दिगम्बर जैन परिषद्' और डॉ. कामता प्रसाद जी, पं. जुगल किशोर जी मुख्तार, डॉ. ज्योतिप्रसाद जी जैसे समर्पित इतिहास-तत्त्व-मनीषियों ने की है. और वह भी जैनागम के अनुसार। उनके महान् व्यक्तित्व को उनके शब्दों से नकारा नहीं जा सकता। यह खोज भी सन् 1929 से शुरू हुई, अत: उसे आजादी के पूर्व की नहीं मानना अपनी गर्भित प्रतिबद्धता व्यक्त करना है। ___ माननीय प्राचार्य जी एक ही श्वास में दो विरोधी बातें एक साथ कह रहे हैं (संदर्भनिर्मल ध्यान ज्योति, अंक 202, पृष्ठ 9)। एक ओर वे दिगम्बर-जैनेतर-साहित्य को प्रमाण नहीं बनाना चाहते और उससे उत्पन्न अनेकों विसंगतियों से सावधान करते हैं; तो दूसरी ओर उसी क्रम में वे 'भगवतीसूत्र' के आधार को प्रमाण मानकर कहते हैं कि “वैशाली और नालन्दा दोनों ही स्थानों के समीप कोल्लाग-सन्निवेश और दो-दो कुण्डग्राम थे। इस उल्लेख के आधार पर कुण्डलपुर-नालन्दा को जन्मभूमि मानने में कोई अड़चन शेष नहीं रहती।" स्पष्ट है कि जो नहीं है, उसे हम ‘भगवतीसूत्र' से सिद्ध कर भगवान् महावीर को मांसाहारी भी स्वीकारते हैं। फिर इसमें भी विरोधभास है। प्रज्ञाश्रमणी जी को 'ग्राम' शब्द इष्ट नहीं है. फिर यहाँ कुण्डलपुर शब्द न होकर कुण्डग्राम लिक है। क्या दोनों समानार्थी हैं? फिर 'विदेह' का क्या हुआ। नालंदा ही 00 42 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002
SR No.521369
Book TitlePrakrit Vidya 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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