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________________ उनके निवास पर आयोजित यशपाल जी कृति 'अन्तर्दृष्टि' के लोकार्पण समारोह में कुन्दकुन्द भारती के विद्वान् डॉ. वीरसागर जैन ने प्राप्त किया। डॉ. वीरसागर जैन ने इस समारोह में यशपाल जी के उत्कृष्ट-लेखन का गुणानुवाद करते हुए कुन्दकुन्द भारती के नवनिर्मित-पुस्तकालय का परिचय दिया और प्राप्त धनराशि के लिए हार्दिक कृतज्ञता भी प्रकट की। –प्रभात जैन ** 'अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन' का 41वाँ सत्र पुरी में आयोजित पूना (महाराष्ट्र) के सुप्रतिष्ठित संस्थान 'भण्डारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' के द्वारा आयोजित होनेवाला 'अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन' इस बार उड़ीसा के पवित्र नगर 'पुरी' में गरिमापूर्वक आयोजित हुआ। यह इस सम्मेलन का 41वाँ सत्र था। इसके 'प्राकृत एवं जैनविद्या' वर्ग में देशभर के 50 से अधिक प्रतिष्ठित विद्वान् सम्मिलित हुए। इस सत्र की अध्यक्षता आरा (बिहार) के डॉ. रामजी राय ने की। दिल्ली से इसमें डॉ. सुदीप जैन के नेतृत्व में कुल चार विद्वानों (प्रो. शशिप्रभा जैन, श्रीमती रंजना जैन, प्रभात कुमार दास, श्रीमती. मंजूषा सेठी) ने अपने गरिमापूर्ण शोधपत्र प्रस्तुत किये, जिन्हें समागत मनीषियों ने मुक्तकंठ से सराहा। उड़ीसा की जैनसमाज के विशेष अनुरोध पर दिनांक 15-12-2002 का अपराह्नकालीन सत्र 'खण्डगिरि-उदयगिरि' क्षेत्र पर आयोजित किया गया। इस निमित्त एक चार्टर्ड बस द्वारा सभी विद्वान् ‘पुरी' से यहाँ पधारे, तथा उन्होंने हाथीगुम्फा का ऐतिहासिक खारवेल-शिलालेख देखा, और उसका विस्तृत परिचय डॉ. सुदीप जैन से प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने रानीगुफा आदि अनेकों पुरातात्त्विक महत्त्व के श्रमण-संस्कृति के पुरावशेषों का अवलोकन किया, और खण्डगिरि पर स्थित जैन-मंदिरों और प्राचीन गुफाओं का भी दर्शन किया। इसके बाद उड़ीसा जैनसमाज द्वारा आयोजित विशेष-समारोह में उन्होंने उड़ीसा में जैन-संस्कृति के विविध आयामों पर अपने गवेषणापूर्ण विचार व्यक्त किये। क्षेत्र के मंत्री श्री शांति कुमार जैन ने समागत विद्वानों का तिलक, उत्तरीय-समर्पण एवं साहित्य-भेंटपूर्वक भावभीना स्वागत किया। तथा सत्र का संचालन श्री अरुण कुमार जैन, इंजीनियर ने किया। इस सत्र में समागत विद्वानों ने दो महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव भी पास किए. जिनमें प्रथम प्रस्ताव के अंतर्गत खण्डगिरि पर्वत पर स्थित गुफाओं में जो जिनबिम्ब उत्कीर्णित हैं, वे दिगम्बर जैन-परम्परा के हैं —यह पुष्ट करते हुए उड़ीसा सरकार एवं पुरातत्त्व विभाग से वहाँ पर हुए अतिक्रमण को शीघ्र हटाने और वहाँ की सांस्कृतिक गरिमा बनाने की माँग की। तथा द्वितीय प्रस्ताव के अंतर्गत सभी विद्वानों ने एक स्वर से भगवान् महावीर की जन्मभूमि वैशाली कुण्डलपुर' या 'विदेह कुण्डपुर' ही है, -इसे अपनी स्वीकृति प्रदान की। कार्यक्रम में कटक एवं भुवनेश्वर आदि की जैनसमाज के पदाधिकारी एवं कार्यकर्तागण भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। –सम्पादक ** डॉ. भारिल्ल 'महामहोपाध्याय' के विरुद से विभूषित भारतीय विद्याभवन, चौपाटी के खचाखच भरे विशाल हॉल में आयोजित समारोह में 00 106 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002
SR No.521369
Book TitlePrakrit Vidya 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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