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________________ आदिपुराण आदि ग्रन्थों में रत्नपुर के उल्लेख मिलते हैं। यह रत्नपुर प्रसंग के अनुसार कौशल-जनपद में होना चाहिए। रत्नसंचया नगरी :- इसका उल्लेख वज्रायुद्ध राजा की कथा के प्रसंग में हुआ है। यह रत्नसंचया नगरी 'मंगलावती देश' में स्थित थी। इसका उल्लेख 'आदिपुराण' (19-46) तथा 'भविसयत्तकहा' में भी हुआ है। . - रथनुपुर :- यह विजयार्द्ध की दक्षिण श्रेणी में स्थित था। 'आदिपुराण' (19-46), 'समराइच्चकहा' तथा 'भविसयत्तकहा' आदि में इस नगर के उल्लेख प्राप्त होते हैं। सोपारक नगर :- इस नगर का वर्णन 'रयणचूडरायचरियं' में अमरदत्त और मित्रनंद की कथा के प्रसंग में आया है। जिसमें मित्रानंद अपने मित्र अमरदत्त की शालभंजिकारूपी सुन्दरी का पता लगाने के लिए पाटलीपुत्र से सोपारक एवं सोपारक से उज्जैनी जाता है तथा उज्जैनी से सीधा पाटलीपुत्र की लम्बी यात्रावाला आने-जाने का मार्ग एक महीने में तय कर लेता है। यह सोपारक' गुजरात में ही है। जिसकी पहचान कई लोगों ने की है। जिसका उल्लेख कुवलयमालाकहा' एवं 'यशस्तिलक' में भी मिलता है। शंखपुर :- ग्रन्थ में शंखपुर का उल्लेख विष्णुश्री के दृष्टान्त के प्रसंग में आया है। 'समराइच्चकहा' में इस नगर का उल्लेख हुआ है। ऐसी मान्यता है.कि अरिष्टनेमि की शंखध्वनि से 'शंखपुर' नगर बसाया था। .. 'रयणचूडरायचरियं' के नगरों के वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रन्थकाल ने अधिकतर उत्तर भारत के नगरों का उल्लेख किया है। इनमें से अधिकांश नगरों के उल्लेख मध्ययुगीन जैन-साहित्य में मिलते हैं। इनमें से कुछ ऐसे नगर भी हैं, जो ‘रयणचूडराय चरियं' में उल्लेखमात्र हुये हैं। उनका वर्णन इसप्रकार है भूतमाला :- यह यशोमति वणिक की पुत्री कुसुममति के पूर्वभव की कथा के प्रसंग में आया है। मुनि उसके पूर्वभव का वर्णन करते हुए कहते हैं कि यह उसके कर्मों का ही फल है। इसकी पुत्री ने तीसरे जन्म में 'भूतमाल' नगर में भूतदेव वणिक की पुत्री थी। एक दिन उसने बिल्ली के दूध पी जाने पर उसने अपनी बहू को कहा “डाकिनी की तरह तुम खड़ी हो और बिल्ली को नहीं देखती हो।" रतिविलासपुर :- सुवेलगिरि पर्वत के शिखर पर रतिविलासपुर' नामक नगर था। इस नगर की आधुनिक पहचान कठिन है। विलासपुर नाम के अवश्य कुछ नगरों का उल्लेख मिलता है। ‘समराइच्चकहा' के उल्लेख के अनुसार विलासपुर विद्याधरों का नगर था। रयणचूडरायचरियं में भी इसे विद्याधर का नगर' कहा गया है। वणसाल :- रयणचूड की पत्नी राजहंसी के पूर्वभव की कथा बन्धुधर्मश्रेष्ठी एवं उसकी पत्नी नागश्री के प्रसंग में यह नगर वर्णन में आया है। जिसको भरतक्षेत्र में बताया गया है। यह कथा सौतिया-डाह को बतानेवाली है। विजयखेड़ा :- यह नगर श्रेमंकर सोनी व सूखंकरा की कथा के प्रसंग में आया है, जो सुखकरा-कुंडल बनाने के बहाने छुप-छुप कर प्रणय-क्रिया करती है, तथा एक दिन प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर 2001 0095
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
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