SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उसके साथ भाग जाती है। इसमें कहा गया है कि "भूमि, वन एवं आंगन में अनेक प्रकार के धाम, पन्ना और मणिरत्नों से सुशोभित 'विजयखेड़ा' नामक नगर है।" सुभगा नगरी :-- इसी जम्बूद्वीप' नामक द्वीप में महाविदेह' रमणीक विजय की सीता महानदी के दक्षिण किनारे 'सुभगा' नगरी है। इस नगरी का वर्णन अपराजित एवं अनन्तवीर के पूर्वजन्म अमिततेज एवं श्रीविजय की कथा के प्रसंग में आया है। सुरतिलक नगर :-- सुरतिलक नामक नगर है। इस नगर का नाम मात्र उल्लेख रयणचूड की पत्नी तिलक सुन्दरी के पूर्वभव के क्रम में आया है। जिसमें दृश्चेष्ठा के परिणाम-कथन का वर्णन है। सुरसेल नगर :- इस उल्लेख से यह ज्ञात होता है कि भरतक्षेत्र में सुरसेल' नामक नगर था। कुलवर्द्धन सेठ एवंउसकी पत्नी मनोरमा के प्रसंग में आया है। हेमागर :- यह कुलवर्द्धन सेठ और उसकी पत्नी मनोरमा की कथा के प्रसंग में आया है, जो व्यापार के लिए 'कटाह' (कडाक) द्वीप पहुँचे और वहाँ से हेमागर नगर' गये। केवल नाममात्र का उल्लेख होने के कारण इसकी पहचान कठिन है, फिर भी कटाह द्वीप' के आसपास ही कहीं स्थित होना चाहिए। तथा यह नगर एक व्यापारिक केन्द्र भी था। भंकटा नगरी :- मंदिर से देव-द्रव्य के हड़पने के दुष्परिणामस्वरूप केशवश्रावक की कथा में इस नगरी का नाममात्र उल्लेख है। उपर्युक्त वर्णित नगरों में जिन नगरों का प्रथम बार उल्लेख हुआ है, उनकी पहचान यदि विद्वान् लोग करें, तो शोधक्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य होगा। डॉ० कैलाश चन्द्र जी जैन, प्रोफेसर, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग, उज्जैन ने इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, तथा अन्य भूगोल के विद्वानों के द्वारा भी इन नगरों की पहचान कर सकते हैं। सन्दर्भग्रंथ-सूची 1. द्र० जैन हुकमचन्द, 'आचार्य नेमिचन्द्रकृत रयणचूडरायचरियं का आलोचनात्मक सम्पादन ___ एवं अध्ययन', अनु० 58, पैरा 2। 2. जिनसेनकृत 'आदिपुराण', 6-2061 3. द्र० जैन हुकमचंद, 'आचार्य नेमिचन्द्रकृत रयणचूडरायचरियं का आलोचनात्मक सम्पादन एवं अध्ययन', पृ० 282-83 । 4. द्र० जैन गोकुलचन्द, 'यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन', पृ० 282-83 । 5. द्र० यादव झिनकू, 'समराइच्चकहा एक सांस्कृतिक अध्ययन', पृ० 2871 6. द्र० जैन प्रेमसुमन, 'कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन', पृ० 76। 7. द्र० डे, ‘ज्योग्राफिकल डिक्शनरी', पृ० 138। 8. द्र० जैन हुकम चन्द, 'आचार्य नेमिचन्द्रसूरिकृत, रयणचूडराय चरियं का आलोचनात्मक सम्पादन एवं अध्ययन', अनु० 45, 47। 9. द्र० जैन गोकुलचन्द, 'यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन', पृ० 2871 10. द्र० जैन प्रेमसुमन, 'कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन', पृ० 67। " 9096 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy