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________________ अमरावती का ही यह प्राचीन उल्लेख है। उज्जैनी :- रत्नचूड में उज्जैनी नगरी का वर्णन अमरदत्त और मित्रानंद की कथा के प्रसंग में कई बार हुआ है। उज्जैनी नगरी के संबंध में विद्वानों ने बहुत कुछ प्रकाश डाला है। इसके अवन्ती, उज्जयिनी आदि नाम भी मिलते हैं। ___ कंचनपुर :- आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ने कलिंग-प्रदेश में 'कंचनपुर' को स्थित बतलाया है। यह कंचनपुर कलिंग की राजधानी थी, जो सातवीं शताब्दी में 'भुवनेश्वर' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ग्रन्थ के वर्णन के अनुसार यह एक संमृद्ध नगरं था। यह अपनी समृद्धि, धार्मिकता और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध था। गजपुर :- ग्रन्थ में कुरु-जनपद के अलंकार के रूप में 'गजपुर' नगर का उल्लेख हुआ है। कवि ने इस नगर का काव्यात्मक वर्णन किया है। यह नगर ग्रन्थ (रयणनचूडरायचरियं) के नायक रत्नचूड का जन्म-स्थान था। प्राचीन ग्रन्थों में गजपुर के कई उल्लेख प्राप्त होते हैं। इसके कई नाम थे। जातकों में गजपुर' को 'इन्द्रप्रस्थ' कहा गया है। वसुदेवहिण्डी' में इसे 'ब्रह्मस्थल' कहा गया है। वर्तमान में इसे 'हस्तिनापुर' कहा जाता है। गजपुर जैनसाहित्य का प्रसिद्ध नगर है। रयचणचूड के समकालीन-ग्रन्थ 'भविसयत्तकहा' में भी गजपुर का उल्लेख हुआ है और संयोग से वहाँ भी वह नायक भविष्यदत्त की जन्मभूमि बताया है। ___नन्दीपुर :- ग्रन्थ में तिलकसुन्दरी की जन्मभूमि के रूप में 'नन्दीपुर' नगर का वर्णन कवि ने किया है। यह नगर 'संडिप्रभ' जनपद में स्थित था। इससे ज्ञात होता है कि गजपुर और नन्दीपुर दोनों ही वर्तमान उत्तरप्रदेश के नगर थे। नन्दीपुर के प्राचीन उल्लेख भी मिलते हैं। इसकी पहचान 'फैजाबाद' से आठ-नौ मील की दूरी पर स्थित 'नन्द' गाँव से की जा सकती है।' पद्मावती नगरी :- पुरुषोत्तम राजा के कथा के प्रसंग में 'पद्मावती नगरी' का उल्लेख हुआ है। जहाँ से वह राजा स्वप्नसुन्दरी को लेने के लिए प्रियंकरा नगरी को गया था। पद्मावतीपुर का उल्लेख यशस्तिलक' में भी हुआ है। डॉ० गोकुलचन्द्र जैन ने इसकी पहचान ‘पवाया' गाँव से की है। ___ पाटलिपुत्र :- ग्रन्थ में इसका उल्लेख अमरदत्त और मित्रानंद की कथा में हुआ है। पाटलीपुत्र एक प्रसिद्ध कलात्मक मंदिर होने की बात ग्रन्थकार ने कही है। पाटलिपुत्र से 'सोपारक' और सोपारक से 'उज्जैनी' तथा उज्जैनी से पाटलिपुत्र की यात्रा मित्रानंद ने की थी। इससे ज्ञात होता है कि ये तीनों नगर स्थलमार्ग से जुड़े हुए थे। पाटलिपुत्र का उल्लेख जैन-साहित्य में बहुत आया है, इसे आजकल ‘पटना' कहते हैं। पोदनपुर :- श्री विजय और सुतारा की कथा-प्रसंग में पोदनपुर का उल्लेख ग्रन्थ में हुआ है। जैन-साहित्य में पोदनपुर के कई उल्लेख हैं । यह नगर गोदावती के तट पर दक्षिण भारत में स्थित था। रत्नपुर :- ग्रन्थ में इसका उल्लेख सत्यभामा और कपिल की कथा के प्रसंग में आया है। रत्नपुर नाम के कई नगर प्राचीन भारत में थे। समराइच्चकहा, कुवलयमाला, 00.94 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
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