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________________ 'रयणचूडरायचरियं' में वर्णित नगर -- डॉ० हुकम चन्द जैन के 12वीं शताब्दी में आचार्य नेमिचन्द्र सूरि हुए हैं, जो आगम, दर्शन एवं कथा-साहित्य उत्कृष्ट विद्वान् थे। इन्होंने अपने साहित्य में प्राकृत के साथ संस्कृत एवं अपभ्रंश के शब्दों का भी प्रयोग किया है, जो समास - अल्प पदावली से युक्त है। राजस्थान एवं गुजरात में रहते हुए नेमिचन्द्र सूरि (देवेन्द्र गणि) ने आख्यानकमणिकोश, उत्तराध्ययन की सुखबोधा टीका, महावीरचरियं, आत्मबोधकुलक ( धर्मोपदेशकुलक) तथा रयणचूडरायचरियं की रचना की। नेमिचन्द्रसूरि की रचणचूडरायचरियं' अन्तिम रचना है। इस कथा को लेखक ने छह भागों में विभक्त किया है। मूलकथा के साथ-साथ ग्रन्थ में 45 अवान्तर - कथाओं का समावेश हुआ है, जो नायक के चरित्र को विकसित करने में सहायक है । आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ने दान, शील, तप और भावना के महत्त्व को समझाने के लिए बकुलमाली के पूर्वभव की कथा के रूप में 'रयणचूड' की कथा आयी है। भाषा-शैली एवं सांस्कृतिक सामग्री की दृष्टि से यह काव्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । कवि ने काव्यात्मक-पक्ष को भी सशक्त बनाया है । कवि का यह ग्रन्थ गद्य की उत्कृष्टता में 'समराइच्चकहा' एवं बाणभट्ट की 'कादम्बरी' से पीछे नहीं है। उन्होंने अपने ग्रन्थ में तत्कालीन लोक-संस्कृति, शिक्षा एवं कला की महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है। सांस्कृतिक धरातल के साथ-साथ 'रयणचूडरायचरियं' में जनपद, नदी, पर्वत तथा विभिन्न शहरों का भी उल्लेख है । इस निबन्ध में कतिपय नगरों का ही परिचय देने का प्रयत्न किया गया है 1 इस ग्रन्थ-में अमरावती, उज्जैनी, कंचनपुर, कुंडलपुर, गजपुर, नंदीपुर, पद्मसंड, पद्मावती, पद्मोत्तर, पाटलिपुत्र, प्रियंकरा, पोदनपुर, पुण्डगिरिणी, भूतमाल, मलयपुर, रत्नपुर, रत्नसंचया, वणसाल, विजयखेड़ा, विश्वपुर, शंखपुर, सुभगा, सुरतिलक, सुरसेल, सोपारक, हर्षपुर, हस्तिनापुर, हेमागर और क्षेमंकरा आदि 35 नगरों का उल्लेख मिलता है । ग्रन्थ में उल्लिखित कुछ नगर भारत के प्राचीन विशिष्ट नगर थे। इनका संक्षिप्त परिचय निम्नानुसार 1 अमरावती नगरी :- इसका उल्लेख 'राजहंसी' की प्राप्ति में हुआ है। अमरावती नगरी को स्वर्गपुरी के समान सुन्दर बताया गया है।' जिनसेन के 'आदिपुराण' में भी अमरावती को ‘इन्द्रनगरी' कहा गया है।' ज्ञात होता है कि वर्तमान में नागपुर के पास स्थित प्राकृतविद्या + अक्तूबर-दिसम्बर 2001 93
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
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