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________________ श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विवादपरिषद के 19वें अधिवेशन में अहिंसा स्थल पर दिनांक 17.11.2001 को पं. प्रकाशचंद शास्त्री हितैषी' का अध्यक्षीय भाषण यदीया वाग्गंगा विविधनयकल्लोल-विमला, वहज्ज्ञानांभोभिर्जगति जनतां या स्नपयति । इदानीमप्येषा बुधजनमरालै: परिचिता, महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे।। 6।। धर्म-परंपरा आदितीर्थकर भगवान् ऋषभदेव की दिव्यदेशना से प्रारंभ होकर अंतिम-तीर्थंकर भगवान् महावीर एवं अंतिम-श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाह तक उस दिव्यदेशना से प्रभावित मुखाग्र ही ज्ञानगंगा प्रवाहित होती रही है। पश्चात् आचार्य कुंदकुंद, पुष्पदंत, भूतबलि आदि आचार्यों द्वारा शास्त्ररचना द्वारा चारों अनुयोगों की चतुर्धारारूप ज्ञानवाहनी संतप्त-प्राणियों को शाश्वत-शांति प्रदान करती रही। इसके पश्चात् बहुश्रुताभ्यासी विद्वान् पं० आशाधर जी, पं० टोडरमल जी, पं० दौलतराम जी, पं० बनारसीदास जी, पं० भूधरदास जी आदि विशिष्ट विद्वानों द्वारा जिनवाणी-माता का श्रुतभण्डार भरा जाता रहा है, जिससे जिनधर्म की अक्षुण्णपरम्परा प्रवाहित होती रही है। उसी परंपरा की बागडोर गुरु गोपालदास जी बरैया, ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी, क्षुल्लक गणेशप्रसाद जी वर्णी आदि ने समर्पण-भाव से इसे सम्भालकर उसका यथाशक्ति प्रचार-प्रसार किया। इससमय तक विद्वानों का कोई संगठन नहीं होने से धर्मप्रचार का कार्य सुसंगठित होकर करने की आवश्यकता महसूस करते हुए पूज्यपाद क्षु० गणेशप्रसादजी वर्णी ने 1944 ई० में विशिष्ट विद्वानों की उपस्थिति में कलकत्ता में वीरशासन जयंती' के सुअवसर पर इस विद्वद्परिषद्' की स्थापना की थी। ____ इस परिषद् की सक्रिय कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिये पं० बंशीधर जी न्यायालंकार इन्दौर, पं० जगन्मोहनलाल जी सिद्धान्त शास्त्री, पं० कैलाशचन्द जी सिद्धान्ताचार्य, पं० फूलचन्द जी सिद्धान्ताचार्य, पूज्यपाद गणेशप्रसाद जी वर्णी, पं० दयाचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री सागर, पं० जीवंधर जी शास्त्री, पं० पन्नालाल जी साहित्याचार्य सागर, पं० नेमिचंद जी ज्योतिषाचार्य, डॉ० कोठिया जैसे दिग्गज गणमान्य विद्वानों ने विद्वानों में एकता एवं धर्मप्रचार प्रसार करने के लिए 1086 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
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