SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनीषीप्रवर टोडरमल : प्रमुख शौरसेनी जैनागमों के प्रथम हिन्दी टीकाकार - प्रो० (डॉ०) राजाराम जैन विगत तीन शताब्दियों मे जैन - परम्परा में जितने भी मनीषी - साधक हुये हैं, उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का सूक्ष्म अवलोकन किया जाये, तो पंडित टोडरमल जी का स्थान सर्वोपरि सिद्ध होगा। यद्यपि इस ज्वलंत सत्य को कतिपय पूर्वाग्रही व्यक्तित्व अंदर से स्वीकारते हुए भी वाचिक स्वीकृति देने में कृपणता करने लगते हैं। जो पं० जी के प्रशंसक हैं, वे भी शायद इतनी गहराई एवं व्यापक तुलनात्मक अध्ययन के साथ उनसे परिचित नहीं हैं। एक सारस्वत साधक की शोधपूर्ण लेखनी से प्रसूत यह आलेख प्रत्येक जिज्ञासु को अवश्य पठनीय एवं मननीय है । -सम्पादक पण्डितप्रवर टोडरमल जी 18- 19वीं सदी की महान् विभूति एवं प्रमुख शौरसेनीजैनागमों के सर्वप्रथम हिन्दी - टीकाकार थे । उन्होंने जैन - सिद्धान्तों एवं जैनदर्शन के दुरूह - रहस्यों का जनभाषा में उद्घाटन कर जिनवाणी की महती सेवायें की हैं। शौरसेनीजैनागमों में सूत्रशैली में वर्णित करणानुयोग, द्रव्यानुयोग एवं चरणानुयोग के विषय अत्यन्त जटिल एवं नीरस समझे जाते हैं, अतः समय-समय पर इनके ऊपर प्राकृत- संस्कृत टीकायें भी लिखी जाती रही हैं। वे तत्कालीन दृष्टिकोण से भले ही सुबोध रही हों, किन्तु परवर्ती कालों में भाषापरिवर्तन के अनिवार्य नियमों के कारण पुनः दुर्बोध सिद्ध होने लगीं । इसकारण आगमों का अध्ययन एवं स्वाध्याय सीमित होने लगा । पण्डित टोडरमलजी प्रथम विद्वान् थे, जिन्होंने युग की आवश्यकता को समझा और अपने सभी प्रकार के ऐहिक सुखभोगों को जिनवाणी-माता की पुण्यवेदी पर समर्पित कर उक्त आगम एवं कुछ प्रमुख अनुवर्ति-आगमग्रन्थों को लोक - प्रचलित भाषा में प्रस्तुत किया और इसप्रकार स्वाध्याय की परम्परा को लुप्त होने से बचा लिया। जनभाषा के अनन्य-सेवक एवं हिन्दी - गद्य के प्रथम निर्माता टोडरमलजी परम निष्ठावान्, सात्त्विक चरित्र, निरभिमानी, लोकोत्तर - प्रतिभा के धनी एवं मनस्वी व्यक्ति थे। उनकी जिह्वा पर सरस्वती का साक्षात् निवास था । राष्ट्रभाषा के वे परम पुजारी थे। प्राचीन भारतीय भाषायें उनके लिये प्रेरणा की अजस्र - स्रोत थीं अवश्य, प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर 2001 39
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy