SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 0 I was happy to receive the July-September issue of your esteemed journal "Prakrta Vidya". As usual, it was excellently produced. Especially valuable in this issue are the articles by Baladeva Upadhyaya, Hazari Dvivedi and Vasudev Sharan Agrawala. One rarely finds today such comprehensive visionof Indian culture as presented by these departed savants. --S.R. Sharma, Aligarh (U.P.) ** 0 'प्राकृतविद्या' का सदा की भाँति सजा-संवरा जुलाई-सितम्बर 2001 के अंक का स्वाध्याय करने का अवसर मिला। अंक को एक ही बैठक में पूरा पढ़ गया। यह पत्रिका की आकर्षकता ही दर्शाती है। कवर-पृष्ठ पर चन्द्रगुप्त मौर्य का डाक टिकट एवं पीछे परिचय पढ़कर सुखानुभूति हुई। 'अहिंसा के अवतार-पंचपरमेष्ठी' डॉ० सुदीप जी जैन का सम्पादकीय मन को बहुत भाया। 'समयपाहुड बदने का दुःसाहसपूर्ण उपक्रम' भी पूरा पढ़कर ही छोड़ा तथा सोचने पर मजबूर हो गया। 'ब्राह्मी लिपि और जैन-परम्परा' आलेख रोचक, ज्ञानवर्द्धक पठनीय, प्रेरणादायी है। 'रावण नहीं फूंका जायेगा अब दशहरे पर' श्री सुरेश सिन्हा का आलेख अलख जगता है कि पहले अपने अन्दर की रावणीय बुरी-भावनाओं को जलाओ। आज सभी रावण होते जा रहे हैं, फिर उन्हें क्या अधिकार है रावण के पुतले दहन का? पहले राम बनकर तो दिखाओ, आज राम की वेश-भूषा बनाकर रावणीय-काम हो रहे हैं। राम-भक्तों को जरा अपना हृदय टटोलना होगा। ‘खण्डहरों का वैभव' व डॉ० रमेशचंद्र जी अपने पुराने स्तंभों के संरक्षण, संवर्धन की प्रेरणा देता है। ___प्राकृतविद्या ने प्राकृतभाषा के उत्थान में जो अहम् भूमिका निभायी है वह अभिनंदनीय, स्तुत्य है। पत्रिका में प्रकाशित शोधपरक लेख काफी कुछ दबी व अनसुलझी बातों के निराकरण में अपनी स्तुत्य छाप छोड़ते है। -सुनील जैन संचय' शास्त्री, सागर (म०प्र०) ** 0 'प्राकृतभाषा' की सेवा में तथा शोध में कुन्दकुन्द भारती' तथा 'प्राकृतविद्या' का विशेष योगदान है। 'प्राकृतविद्या' जुलाई-सितम्बर 2001 के अंक में आपका महत्त्वपूर्ण लेख 'दक्षिण भारत.....प्रचार-प्रसार था; प्रकाशित हुआ है। पृष्ठ 25 पर आपने सम्राट नेवुपादनेजार को दक्षिण भारत का सम्राट लिखा है। वस्तुत: नेबू कदनेज़ार बेबिलोनिया का शासक था। वह बेबिलोनिया के संस्थापक-सम्राट नेबू पलासर का पुत्र था। ई०पू० 605 में वह सम्राट बना। उसी ने विश्व में अद्भुत माने जाने वाले प्राचीन आश्चर्यों में से एक हैगिंग गार्डेन्स' का निर्माण करवाया था। इसी सम्राट् का एक ताम्रपत्र प्रभास-पट्टन (भारत) में प्राप्त हुआ। डॉ० प्राणनाथ विद्यालंकार ने इसका अनुवाद किया। जिसके अनुसार, “इस राजा द्वारा सौराष्ट्र के गिरनार पर्वत पर स्थित नेमि-मन्दिर के जीर्णोद्धार का उल्लेख है।" प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001 10 103
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy