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________________ यह पूछे जाने पर कि फिर उन कारीगरों, कलाकारों का क्या होगा जो वर्षों से रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले बनाकर अपनी आजीविका चला रहे हैं, अग्रवाल ने कहा कि उनकी रोजी-रोटी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। फर्क सिर्फ यह होगा कि अब वे रावण, मेघनाद और कुंभकरण की जगह जातिवाद, उग्रवाद और भ्रष्टाचार के पुतले बनाएंगे और अब विजयदशमी के दिन इन्हीं को जलाया जायेगा। ये तीनों समस्यों हमारे देश और संस्कृति को खोखला कर रही हैं। रही रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काटने की बात तो इस बारे में महासंघ के अध्यक्ष का कहना है कि दरअसल, शूर्पणखा की नाक काटने की घटना तो सांकेतिक है। खूबसूरत शूर्पणखा ने तो महज राम या फिर लक्ष्मण से शादी की याचना की थी, पर वनवासी राम और बाद में लक्ष्मण ने मना कर दिया था। यह उसका अपमान था, यानी उसकी नाक कट गई थी। उसने यह बात रावण से कहकर उसे युद्ध के लिए भड़काया था। राम या लक्ष्मण जैसा व्यक्ति कभी किसी नारी का अंग-भंग नहीं कर सकता और इसी बात के मद्देनजर इस बात की लवकुश' रामलीला के मंचन में शूर्पणखा की नाक काटने का दृश्य नहीं दिखाया जायेगा। ऐसा करना पूरी नारी-जाति का अमान है। फिलहाल सिर्फ लवकुश-रामलीला कमेटी' ने यह फैसला किया है, लेकिन रामलीला महासंघ के अध्यक्ष अग्रवाल को उम्मीद है कि महासंघ की जल्दी ही होने वाली बैठक में राजधानी की अन्य छोटी-बड़ी रामलीलाओं के पदाधिकारी भी इस बात पर सहमत हो जायेंगे। कलियुग ___ जब पांडव अपने दिन अज्ञात वास में बिता रहे थे, तब एक दिन वे शिकार खेलने निकले। रास्ते में एक जगह भीम को प्यास लग गई। वे पानी खोजते हुए कुछ दूर स्थित एक सरोवर तक आ पहुंचे। उन्होंने देखा कि वहाँ एक धर्मशाला भी बनी थी, जिसमें तीन कमरे थे। एक कमरे में एक विचित्र भैंसा बंधा था, जो दोनों तरफ से चारा खा रहा था। दूसरे कमरे में एक हंस था, जिसे कौवे चोंच मार-मार कर घायल किए दे रहे थे। तीसरे में मिट्टी के बर्तन रखे थे, जो अकारण आपस में टकरा रहे थे और फूट रहे थे। भीम चकित हो गए और बिना पानी पिए ही लौट आए। आकर उन्होंने यह विचित्र-वृत्तांत युधिष्ठिर को सुनाया। युधिष्ठिर ने उनकी शंका का शमन करते हुए कहा, 'तुम कलियुग को देखकर आए हो। कलियुग में ऐसे ही अधिकारी होंगे, जो वेतन भी लेंगे और रिश्वत भी। दोनों ओर से खाने वाला भैंसा इसी का प्रतीक है। हंस वह सत्पुरुष है, जिसे कलियुग में दुर्जन नोंच-नोंच कर खायेंगे और यह पीड़ा वह सहन करेगा। एक ही कुम्हार के परस्पर टकराकर टूटनेवाले बर्तन वास्तव में एक ही पिता के परस्पर लड़कर मिटनेवाले भाई हैं।' भीम कलियुग' का यह प्रकोप सुनकर हतप्रभ रह गए। – (साभार, नवभारत टाइम्स) ** 00 82 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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