________________
रावण नहीं फूंका जायेगा अब दशहरे पर
___ -सुरेशचन्द्र सिन्हा रावण आदि के पुतलों का दहन करना जैन-परंपरा में सूक्ष्मजीवों की द्रव्यहिंसा के साथ-साथ रावण आदि के प्रति भावहिंसारूप होने के कारण सदा से निषिद्ध रहा है। इसका कृत-कारित-अनुमोदना से विरोध जैन मनीषीगण चिरकाल से करते रहे हैं। अब हर्ष की बात यह है कि आज के रामलीला-आयोजकों को भी इस दिशा में विवेक-बोध जागृत हो रहा है। नीचे लिखे विचारों को हम अविकलरूप में मात्र इसी अहिंसक-अभिप्राय से प्रस्तुत कर रहे हैं। अन्य दार्शनिक साम्प्रदायिक मान्यताओं को सहमति देने का भाव हमारा नहीं
-सम्पादक . इस बार विजयदशमी पर रावण नहीं फूंका जाएगा, न लंका-दहन होगा और न ही शूर्पणखा की नाक कटेगी। दिल्ली की मशहूर रामलीला कमेटी 'लवकुश' ने यह फैसला किया है। इस बार पुतले तो जलेंगे, लेकिन जातिवाद, उग्रवाद और भ्रष्टाचार के। रामलीला महासंघ के अध्यक्ष, लवकुश' के महासचिव सुखवीर शरण अग्रवाल के अनुसार, विश्व के बदलते माहौल के मद्देनजर यह निर्णय लिया गया है। आज सारा विश्व सद्भावना और भाईचारे का माहौल बनाने की दिशा में प्रयत्नशील है। हम यह संदेश देना चाहते हैं कि लंका हमारा पड़ोसी राष्ट्र है और लंका-दहन के दृश्य का मंचनकर हम नफरत का संदेश देना नहीं चाहते।
रामलीला महससंघ के अध्यक्ष का कहना है कि मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के जमाने से ही दिल्ली में रामलीलाओं के बाद विजयदशमी के दिन रावण का पुतला फूंका जाता रहा है, लेकिन अब बदले समय में रामलीला के आयोजकों को भी चाहिए कि वे पुराने किस्से-कहानियों को नए परिप्रेक्ष्य में देखें। राम-रावण युद्ध दरअसल दो संस्कृतियों, आर्य और द्रविड़ का टकराव था। श्रीराम तो हमारे पूज्य हैं। रावण ब्राह्मण था, प्रकांड विद्वान् था, वेदों का ज्ञाता था। आज भी दक्षिण में कई जगह उसकी पूजा होती है। __ रावण का पुतला फूंकना सही मायने में ब्रह्म-हत्या है और अब हम ऐसा करना नहीं चाहते। शायद आपको मालूम होगा कि जब रामेश्वरम' में भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना की थी, तो पूजन के लिए रावण को बुलवाया था। रावण आया और उसने विधिपूर्वक पूजा करवाई। जिस रावण को भगवान् राम ने भी मान्यता दी थी, उसे जलाना हमें शोभा नहीं देता।
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001
10 81