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________________ होनेवाली आय का कुछ प्रतिशत धन या वस्तु देनी पड़ती थी । इसीप्रकार के भूमिदान से सम्बन्धित उल्लेख अभिलेखों में मिलते हैं । तत्कालीन समाज में भूमिदान के साथ-साथ ग्रामदान की परम्परा भी विद्यमान थी। ग्राम को किसी व्यक्ति को सौंप दिया जाता था, तथा उससे प्राप्त होनेवाली आय से अनेक धार्मिक कार्यों का सम्पादन किया जाता था । एक अभिलेख के अनुसार” दानशाला और बेल्गुल मठ की आजीविका - हेतु 80 वरह की आयवाले 'कबालु' नामक ग्राम का दान दिया गया। इसके अतिरिक्त जीर्णोद्धार, आहार, पूजा, आदि के लिए ग्रामदान के उल्लेख मिलते हैं। 1 14 15 आलोच्य अभिलेखों में कुछ ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं, जिसमें किसी वस्तु या सम्पत्ति को न्यास के रूप में रखकर ब्याज पर पैसा ले लिया जाता था तथा पैसा लौटाने पर सम्पत्ति लौटा दिया जाता था । इस जमा करने के प्रकार को 'अन्विहित' कहा जाता था । ब्रह्मदेव मण्डप के एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार " महाराजा चामराज औडेयर ने चेन्नन्न आदि साहूकारों को बुलाकर कहा कि तुम बेल्गुल मन्दिर की भूमि मुक्त कर दो, हम तुम्हारा रुपया देते हैं। इसीप्रकार का वर्णन एक अन्य अभिलेख में भी मिलता है 1 इसके अतिरिक्त प्रतिमास या प्रतिवर्ष जमा कराने की परम्परा उस समय विद्यमान थी । इसकी समानता वर्तमान 'आवर्त्ति जमा योजना' (Recurring Deposit Scheme) से की जा सकती है। इसमें पैसा जमा किया जाता था तथा उसी पैसे से अनेक कार्यों का सम्पादन किया जाता था। विन्ध्यगिरि पर्वत के एक अभिलेख के अनुसार बेल्गुल के समस्त जौहरियों ने गोम्मटदेव और पार्श्वदेव की पुष्प-पूजा के लिए वार्षिक धन देने का संकल्प किया। एक अन्य अभिलेख” में वर्णन आता है कि अंगरक्षकों की नियुक्ति के लिए प्रत्येक घर से एक 'हण' (संभवत: तीन पैसे के समकक्ष कोई सिक्का) जमा करवाया जाता था । जमा करने के लिए श्रेणी या निगम कार्य करता था । इसप्रकार जमा करने की विभिन्न पद्धतियाँ उस समय विद्यमान थीं। 16 17 18 ब्याज की प्रतिशतता आलोच्य -अभिलेख तत्कालीन ब्याज की प्रतिशतता जानने के प्रामाणिक साधन हैं । इन अभिलेखों में ब्याज के रूप में दूध प्राप्त करने के उल्लेख अधिक मात्रा में हैं। इसलिये सर्वप्रथम हमें दूध के माप की इकाइयाँ जान लेनी चाहियें । अभिलेखों में दूध के माप की दो इकाइयाँ मिलती हैं— 'मान' और बल्ल । मान दो सेर के बराबर का कोई माप होता था तथा 'बल्ल' दो सेर से बड़ा कोई माप रहा होगा, जो अब अज्ञात है। गोम्मटेश्वर द्वार के दायीं ओर एक पाषाण पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार गोम्मटदेव के अभिषेकार्थ तीन मान दूध प्रतिदिन देने के लिए चार गद्याण का दान दिया । अत: यह समझा जा सकता है कि चार गद्याण का ब्याज इतना होता था, जिससे तीन मान अर्थात् लगभग छह सेर दूध प्रतिदिन खरीदा जा सकता था । किन्तु अन्य अभिलेख के अनुसार केति सेट्टि ने गोम्मटदेव के नित्याभिषेक के लिये तीन गद्याण का दान दिया, जिसके 19 20 ·--- प्राकृतविद्या + जुलाई-सितम्बर 2001 ☐☐ 61
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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