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________________ ब्याज से प्रतिदिन तीन मान दूध लिया जा सके। जैसाकि पहले कहा जा चुका है कि उस समय की ब्याज की प्रतिशतता कोई निश्चित नहीं थी। क्योंकि उपरोक्त दोनों अभिलेख एक ही स्थान तथा एक ही वर्ष के हैं। तब भी जमा की गई राशि भिन्न-भिन्न है। ब्याज की प्रतिशतता के किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले तत्कालीन धन की इकाइयों को जान लेना आवश्यक है। एक गद्याण 60 पैसे के समान एक हण 5 पैसे के समान एक वरह 30 पैसे के समान एक होन या होग 25 पैसे के समान एक हाग 3 पैसे के समान इसप्रकार धन की इकाइयों का ज्ञान होने के पश्चात् अभिलेखों में आये ब्याज-सम्बन्धी उल्लेखों को समझना सुगम हो जाता है। 1275 ई० के अभिलेख में वर्णन आता है कि आदियण्ण ने गोम्मटदेव के नित्याभिषेक के लिए चार गद्याण का दान दिया। इस रकम के एक होन' पर एक हाग' मासिक ब्याज की दर से एक 'बल्ल' दूध प्रतिदिन दिया जाए। अत: उस समय 25 पैसे पर 3 पैसे प्रतिमास ब्याज दिया जाता था। जिससे ब्याज की प्रतिशतता 12% निकलती है। जबकि 1206 ई० अभिलेख के अनुसार नगर के व्यापारियों को यह आज्ञा दी गई कि वे सदैव आठ हण का टैक्स दिया करेंगे, जिससे एक हण ब्याज में आ सकता है। अर्थात् 40 पैसे पर 5 पैसे ब्याज मिलने से यह सिद्ध होता है कि ब्याज की मात्रा 12 1/2% प्रतिमास थी। उपरोक्त दोनों अभिलेखों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि बारहवीं- तेरहवीं शताब्दी में ब्याज की मासिक प्रतिशतता 12% के आसपास थी। प्राचीन योजनायें : आधुनिक सन्दर्भ में :- आलोच्य-अभिलेखों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि उस समय भी आज की भाँति विभिन्न बैंकिंग योजनायें प्रचलित थी. जिनमें निक्षेप, न्यास, औपानिधिक, अन्विहित, याचितक, शिल्पिन्यास, प्रतिन्यास आदि प्रमुख थी। ये अभिलेख उस समय की आर्थिक-व्यवस्था का दिग्दर्शन कराते हैं; जबकि क्रय-विक्रय विनिमय के माध्यम से होता था। जमाकर्ता कुछ धन या वस्तु जमा करवाकर उसके बदले ब्याज में नगर राशि न लेकर वस्तु ही लेता था। इसीप्रकार के उद्धरण, जो आलोच्य अभिलेखों में आये हैं, का विवेचन पहले किया जा चुका है। धन जमा करवाकर उसके ब्याज के रूप में दूध या पुष्प आदि लेना या भूमि देकर उससे अन्य अभीप्सित वस्तुओं की प्राप्ति करना। ___ उपरोक्त प्राचीन योजनाओं में से श्रवणबेल्गोला के अभिलेखों में दो योनाजाओं के उल्लेख प्राप्त होते हैं, जिन्हें आधुनिक सन्दर्भ में स्थायी बचत योजना' (Fixed Deposit) 0062 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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