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________________ गोम्मट सेट्टि ने गोम्मटेश्वर की पूजा के लिए बारह गद्याण का दान दिया। पूजा के अतिरिक्त अभिषेकादि के प्रयोजन से भी धन जमा करवाया जाता था। इस धन पर मिलने वाले ब्याज से नित्याभिषेक के लिए दूध लिया जाता था। एक प्रतिज्ञा-पत्र में वर्णन मिलता है कि सोवण्ण ने आदिदेव के नित्याभिषेक के लिए पाँच गद्याण का दान दिया, जिसके ब्याज से प्रतिदिन एक बल्ल' (संभवत: दो सेर से बड़ी माप की इकाई होती थी) दूध दिया जा सके। विन्ध्यगिरि पर्वत एक अभिलेख के अनुसार आदियण्ण ने गोम्मट देव के नित्याभिषेक के लिये चार गद्याण का दान दिया। इस राशि के एक होन' (गद्याण से छोटा कोई प्रचलित सिक्का) पर एक हाग' मासिक ब्याज की दर से एक बल्ल' दूध प्रतिदिन दिया जाता था। यहीं के एक अन्य अभिलेख के अनुसार गोम्मट देव के अभिषेकार्थ तीन मान (अर्थात् छह सेर) दूध प्रतिदिन देने के लिए चार गद्याण का दान दिया गया। अन्य अभिलेख में वर्णन मिलता है कि केति सेट्टि ने गोम्मट देव के नित्याभिषेक के लिए तीन गद्याण का दान दिया, जिसके ब्याज से तीन मान दूध लिया जाता था। उपर्युक्त ये तीनों ही अभिलेख तत्कालीन ब्याज की प्रतिशतता जानने के प्रामाणिक साधन हैं; किन्तु इन अभिलेखों के अध्ययन में यह ज्ञात होता है कि उस समय ब्याज की प्रतिशतता कोई निश्चित नहीं थी। क्योंकि वे दोनों लेख एक ही स्थान (विन्ध्यगिरि पर्वत) तथा एक ही वर्ष (शक संवत् 1197); के हैं किन्तु एक अभिलेख में चार गद्याण के ब्याज से प्रतिदिन तीन मान दूध तथा दूसरे में तीन गद्याण के ब्याज से भी तीन मान दूध प्रतिदिन मिलता था। किन्तु इसका विस्तृत विवेचन आगे किया जायेगा। ___ पूजा एवं नित्याभिषेकादि के अतिरिक्त प्रयोजनों के लिए भी धन का दान दिया जाता है। दानकर्ता कुछ धन को जमा करवा देता था तथा उससे प्राप्त होनेवाले ब्याज से मन्दिरों-बस्तियों का जीर्णोद्धार तथा मुनियों को प्रतिदिन आहार दिया जाता था। पहले बेलगोल में ध्वंस बस्ती के समीप एक पाषाण-खण्ड पर उत्कीर्ण एक अभिलेख में वर्णन आया है कि त्रिभुवनमल्ल एरेयगं ने बस्तियों के जीर्णोद्धार एवं आहार आदि के लिये बारह गद्याण जमा करवाये। श्रीमती अव्वे ने भी चार गद्याण का दान दिया।" धन दान के अतिरिक्त भूमि तथा ग्राम देने के भी उल्लेख अभिलेखों में मिलते हैं। इसे 'निक्षेप' नाम से संज्ञित किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत कुछ सीमित वस्तु देकर प्रतिवर्ष या प्रतिमास कुछ धन या वस्तु ब्याज स्वरूप ली जाती थी। इस दान की भूमि या ग्राम से पूजा सामग्री, पुष्पमालायें, दूध, मुनियों के लिए आहार, मन्दिरों के लिए अन्य सामग्री प्राप्त की जाती थी। शक-संवत् 1100 के एक अभिलेख के अनुसार" बेल्गुल के व्यापारियों ने गंगसमुद्र और गोम्मटपुर की कुछ भूमि खरीदकर गोम्मटदेव की पूजा के निमित्त पुष्प देने के लिए एक माली को सदा के लिए प्रदान की। चिक्क मदुकण्ण ने भी कुछ भूमि खरीदकर गोम्मटदेव की प्रतिदिन पूजा-हेतु बीस पुष्पमालाओं के लिए अर्पित कर दी। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि भूमि से 00 60 प्राकृतविद्या- जुलाई-सितम्बर '2001
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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