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श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में वर्णित बैंकिंग प्रणाली
- श्री बिशनस्वरूप रुस्तगी
बैंकिंग प्रणाली प्राचीन भारत में अज्ञात नहीं थी । बैंकिंग प्रणाली की स्थापना भारतवर्ष में प्राचीनकाल में ही हो गई थी, किन्तु यह प्रणाली वर्तमान पाश्चात्य प्रणालियों से भिन्न थी। प्राचीन समय में श्रेणी तथा निगम बैंक का कार्य करते थे। देश की आर्थिक नीति 'श्रेणी' के हाथों में थी। वर्तमान काल के 'भारतीय चैम्बर ऑफ कामर्स' से इसकी तुलना कर सकते हैं। पश्चिम भारत के क्षत्रप नहपान के दामाद ऋषभदत्त ने धार्मिक कार्यों के लिए तंतुवाय श्रेणी के पास तीन हजार कार्षापण जमा किये थे । उसमें से दो हजार कार्षापण एक कार्षापण प्रति सैकड़ा वार्षिक ब्याज की दर से जमा किए तथा एक हजार कार्षापण पर ब्याज की दर तीन चौथाई पण (कार्षापण का अड़तालीसवाँ भाग ) थी । इसीप्रकार के सन्दर्भ अन्य श्रेणी, जैसे तैलिक श्रेणी आदि के वर्णनों में भी मिलते हैं। जमाकर्त्ता कुछ धन जमा करके उसके ब्याज के बदले वस्तु प्राप्त करता रहता था ।
इसीप्रकार के उल्लेख श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में भी मिलते हैं । दाता कुछ धन या भूमि आदि का दान कर देता था, जिसके ब्याजस्वरूप प्राप्त होनेवाली आय से अष्टविध पूजन, वार्षिक पाद-पूजा, पुष्प - पूजा, गोम्मटेश्वर - प्रतिमा के स्नान हेतु दुग्ध की प्राप्ति, मन्दिरों का जीर्णोद्धार, मुनि-संघों के लिए आहार का प्रबन्ध आदि प्रयोजनों की सिद्धि होती थी । इसप्रकार इन अभिलेखों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि दसवीं शताब्दी के आसपास बैकिंग प्रणाली पूर्ण विकसित हो चुकी थी । आलोच्य अभिलेखों में जमा करने की विभिन्न पद्धतियाँ परिलक्षित होती हैं । गोम्मटेश्वर द्वार के दायीं ओर एक पाषाण खण्ड पर उत्कीर्ण एक अभिलेख के अनुसार कल्लय्य ने कुछ धन इस प्रयोजन से जमा करवाया था कि इसके ब्याज से छह पुष्पमालायें प्रतिदिन प्राप्त होती रहें। इसके अतिरिक्त आलोच्य अभिलेखों में धन की चार इकाइयों – वरह, गद्याण, होन, हग के उल्लेख मिलते हैं । शक संवत् 1748 के एक अभिलेख ै में वर्णन आता है कि देवराजै अरसु ने गोम्मट स्वामी की पादपूजा के लिए एक सौ वरह का दान दिया । यह धन किसी महाजन या श्रेणी के पास जमा करवा दिया जाता था तथा इसके ब्याज से पाद पूजा के निमित्त उपयोग में आनेवाली वस्तुयें खरीदी जाती थीं। तीर्थंकर सुत्तालय में उत्कीर्ण एक लेख में वर्णन आता है कि
प्राकृतविद्या+जुलाई-सितम्बर '2001
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