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________________ आचार्य थे, जिनमें सबसे प्रसिद्ध 'ब्रह्मा' नामक आचार्य थे। इन्हीं के नाम के आधार पर इस लिपि का नाम 'ब्राह्मी' लिपि पड़ा। उपर्युक्त दोनों मतों में कोई विशेष-भिन्नता नहीं है। 'नारदस्मृति' में उपलब्ध वर्णन में ब्रह्मा के द्वारा उत्तम-चक्षुस्वरूप लेखन (लिपि) की रचना का उल्लेख किया गया है। विधाता के द्वारा भ्रान्ति से बचाने के लिए पत्रारूढ़ अक्षरों की रचना का 'आह्निकतत्व' और ज्योतिस्तत्व' में प्राप्त ब्रहस्पति के वचनों को ओझा ने अपनी रचना में उद्धृत किया है। एक अन्य मत के अनुसार वेद – ज्ञान की रक्षा के लिए आर्यों ने ब्राह्मी-लिपि का आविष्कार किया। वेद ब्रह्मज्ञान माना गया है, तदनुसार इस लिपि का नाम 'ब्राह्मी-लिपि' पड़ा। ब्यूलर आदि कुछ विद्वानों का विचार है कि ब्राह्मणों के द्वारा इस लिपि का प्रयोग किए जाने के कारण इस लिपि का नाम 'ब्राह्मी-लिपि' हो गया। इसीप्रकार एक मान्यता यह भी है कि इस लिपि का प्रयोग 'ब्रह्म देश' में होने के कारण इसे 'ब्राह्मी-लिपि' संज्ञा प्राप्त हुई। हिन्दी विश्वकोष' के मत के अनुसार "ऋषभदेव ने ही सम्भवत: लिपि-विद्या के लिए कौशल का उद्भावन किया। ऋषभदेव ने ही सम्भवतत: शिक्षा के लिए उपयोगी ब्राह्मी-लिपि का प्रयोग किया था।" ___ऋषभदेव जैन-मतावलम्बियों के आदि-तीर्थंकर हैं। इनका उल्लेख वेदों से लेकर ‘भागवत' तक प्रत्येक प्रमुख-ग्रन्थ में उपलब्ध होता है। ऋग्वेद' में महान् पराक्रमी युद्ध . में अजेय ऋषभ को इन्द्र के द्वारा युद्ध का सामान और रथ भेंट किए जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। 'भागवत' में धर्मज्ञ तथा योगचर्या-युक्त ऋषभदेव का वर्णन उपलब्ध होता है। भागवत में उन्हें आदि-मनु स्वयम्भू के पुत्र प्रियव्रत के प्रपौत्र, अग्नीध्र के पौत्र तथा नाभि के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। 'ब्रह्माण्डपुराण' में श्रेष्ठ-क्षत्रिय के रूप में इनका स्मरण किया गया है। उन्होंने जन-कल्याण के लिए कृषि-विद्या का प्रवर्तन किया तथा कृषि-कार्य में सहायक वृषभ को अपने चिह्न के रूप में भी प्रचलित है। मानव-कल्याण के लिए ज्ञान देना उनका दूसरा महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनकी दो पुत्रियाँ तथा सौ पुत्र थे। ब्राह्मी और सुन्दरी उनकी दो पुत्रियाँ थीं। अपने समस्त पुत्रों के साथ-साथ उन्होंने दोनों पुत्रियों को भी सभीप्रकार की विद्याओं का ज्ञान प्रदान किया। आदि तीर्थंकर ऋषभदेव ने दोनों हाथों से ज्ञान देते हुए दायें हाथ से लिपि-ज्ञान और बायें हाथ से अंक-विद्या की शिक्षा दी। 'पुराणसंग्रह' में संकलित 'आदिनाथचरित' में 'ब्राह्मी' को 'अक्षर-ज्ञान' तथा 'सुन्दरी' को 'अंक-विद्या' प्रदान करने का वर्णन उपलब्ध होता है। इस लिपि का ज्ञान आदिनाथ ने संसार में अज्ञान को दूर करनेवाली और जगत् का कल्याण-करनेवाली ज्योति के रूप में करवाया। 'भगवती सूत्र' में उपलब्ध-वर्णन के आधार पर 'अभिधान-राजेन्द्र-कोष' में भी इसीप्रकार का उद्धरण प्रस्तुत किया गया है।" उनके द्वारा करवाये गये ज्ञान से ब्राह्मी लेखन-विज्ञान में पारंगत हो गयीं। ब्राह्मी ने लिपि का रूप ग्रहण कर लिया तथा लिपि ने ब्राह्मी का रूप ग्रहण कर लिया। दोनों प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001 00 53
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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