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'ब्राह्मी लिपि और जैन-परम्परा
-डॉ० रवीन्द्र कुमार वशिष्ठ
'ब्राह्मी लिपि' विश्व की समस्त लिपियों की जननी है— यह मात्र श्रद्धावश या भक्ति के अतिरेक में किया गया कथन नहीं है, अपितु लिपिविज्ञान की दृष्टि से वर्णाकृतियों के विकास एवं लेखनशैली की दृष्टि से भी यह एक महत्त्वपूर्ण प्ररूपण है ऐसा निर्विवाद मनीषियों ने स्वीकार किया है। भारतीय परम्परा के ग्रन्थों में इस बारे में जो उल्लेख मिलते हैं, उनका संक्षिपत निरूपण इस लेख में विद्वान् लेखक ने श्रमपूर्वक किया है। आशा है 'प्राकृतविद्या' के सुधी जिज्ञासुपाठकों के लिए यह लेख अवश्य ही रोचक एवं ज्ञानवर्धक लगेगा।
-सम्पादक
'ब्राह्मी लिपि' भारतवर्ष की ज्ञात प्राचीनतम लिपियों में से प्रमुख लिपि है। आधुनिक काल में प्रचलित अंग्रेजी और उर्दू-भाषाओं के लिए प्रयुक्त लिपियों के अतिरिक्त अन्य समस्त भारतीय-लिपियों का जन्म 'ब्राह्मी लिपि' से ही हुआ है। तिब्बती, स्यामी, सिंहली, थाई, जावा, सुमात्रा की लिपियाँ 'ब्राह्मी' से स्पष्टत: प्रभावित हैं। इस लिपि की गणना प्राचीन भारतीय धार्मिक-ग्रन्थों में सर्वप्रथम की गई है। जैनग्रन्थों ‘पण्णवणासुत्त' तथा 'समवायांगसुत्त' में अट्ठारह और बौद्ध-ग्रन्थ ललितविस्तर' में चौंसठ लिपियों के नाम उद्धृत किए गए हैं। इस समस्त रचनाओं में ब्राह्मी-लिपि' को सर्वप्रथम स्थान दिया गया है। इसीप्रकार 'भगवतीसूत्र' को 'नमो बंभीए लिविए' मंगलाचरण से ब्राह्मी-लिपि को नमस्कार करके प्रारम्भ किया गया है। ये वर्णन प्राचीनकाल में ब्राह्मी-लिपि के महत्त्वपूर्ण-स्थान पर प्रकाश डालते हैं। ब्राह्मीलिपि को विभिन्न विद्वानों ने 'सार्वदेशिक लिपि' माना है। विद्वद्वरेण्य राहुल सांकृत्यायन के सर्वमान्य शब्दों में “यदि कोई एक ब्राह्मी-लिपि को अच्छी तरह सीख जाए, तो वह अन्य लिपियों को थोड़े ही परिश्रम से सीख सकता है।"
ब्राह्मी-लिपि के नामकरण के विषय में विभिन्न-मत प्रचलित हैं। संसार की समस्त कृतियों को ईश्वर को समर्पित करने की भावना प्राचीनकाल से भारतीयों के मानस पर छायी रही है। इसी परम्परा का निर्वाह करते हुए ब्राह्मी-लिपि को ब्रह्म अथवा ब्रह्मा से उत्पन्न माना गया है। यह एक श्रद्धा-युक्त भावना को प्रदर्शित करता है। एक चीनी-विश्वकोश 'फा-वाङ्-शु-लिन' (660 ई०) के अनुसार इस लिपि के रचनाकार तीन दैवी-शक्तिवाले
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001