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"काकजंघा हिमा तिक्ता कषाया कफपित्तजित् । निहन्ति ज्वरपित्तास्रवणकण्डूविषकृमीन् ।।
-(भाव प्रकाश निघण्टु, पृ० 441) आगम-साहित्य में 'वनस्पति' के साथ 'शरीर' शब्द का प्रयोग किया जाता है— पुढवी-सरीरं, आउ-सरीरं, तेउ-सरीरं, वाउ-सरीरं, वणस्सइ-सरीरं।।
– (सूयगडो, 2/3/36)। माजौर
'संस्कृत-शब्दकोश' के अनुसार मार्जार' शब्द बिल्ली का वाचक है। आयुर्वेदीय-शब्दकोश' के अनुसार 'मार्जार' शब्द 'चित्रक' का वाचक है।
"कालो व्याल: कालमूलोऽपि दीप्यो, मार्जारोग्निदाहक: पावकश्च । चित्रांगोऽयं रक्तचित्रो महांग:, स्यद्रुदाहश्चित्रकोन्यो गुणाढ्यः ।।
__-(राजनिघटुवर्ग, 6/46, पृ0 143) आयुर्वेद में चित्रकूल' का प्रयोग सततज्वर में किया जाता है।
कुक्कुट
'संस्कृत-शब्दकोश' के अनुसार 'कुक्कुट' मुर्गे का वाचक है। आयुर्वेदीय शब्दकोश के अनुसार 'कुक्कुट' शितिवार (चोपतिया शाक) का वाचक है
“शितिवार: शितिवर: स्वस्तिक: सुनिषण्णकः । श्रीवारक: सूचिपत्र: पर्णक: कुक्कुट: शिखी।।"
–(भावप्रकाश-निघण्टु, शाकवर्ग, पृ0 673-674) वनस्पतिशास्त्र में 'शितिवार' के लिए 'कुक्कुट' का प्रयोग हुआ है—"कुक्कुट: शितिवार: मुर्गा इति लोके । कुक्कुटचूड़ावत् पुष्पव्यूहत्वात् ।”
-(द्रव्यगुणकोषः, पृ० 43; धन्वन्तरिनिघण्टु, 1/155) 'शितिवार' का प्रयोग दीपन और अग्निमांद्य को दूर करने के लिए किया जाता है। इसका शाक त्रिदोषघ्न और ज्वरनाशक है। मांस
__ आयुर्वेदीय-ग्रन्थों में छाल' के लिए त्वचा' और 'गूदे' के लिए मांस' शब्द का प्रयोग किया जाता है। 'अष्टांग-संग्रह' में 'भिलावे के गूदे' के लिए 'मांस' शब्द का प्रयोग किया गया हैकैयदेव निघण्टु' में भी गूदे के लिए मांस' शब्द का प्रयोग मिलता है
"उष्ण-वात-कफ-श्वास-कास-तृष्णा-वमिप्रणुत। तस्य त्वक् कटु तिक्तोष्णा, गुर्वी स्निग्धा च दुर्जरा ।।
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001