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________________ कृमि श्लेष्मानिलहर: मांसं स्वादु हिमं गुरु । ब्रहणं श्लेष्मलं स्निग्धं पित्तमारुतनाशनम् ।।" –(कैयदेव-निघण्टु, औषधिवर्ग श्लोक 255, 256) वनस्पतिशास्त्र में मांसल फल का मतीरे के अर्थ में प्रयोग हुआ है __ "मांसलफल: कालिन्दी।" अनेक शब्द ऐसे हैं, जिनका प्रयोग प्राणिशास्त्र और वनस्पतिशास्त्र – दोनों में समानरूप से हुआ है। यदि शास्त्रीय-संदर्भ के बिना उनका अर्थ किया जाये, तो असमंजस की स्थिाति पैदा हो सकती है। इस विषय में असमंजस का हेतु है, आचार-शास्त्रीय संदर्भ के बिना किया जानेवाला शब्द का अर्थ। संदर्भ आचार शास्त्र का 'मुनि' के लिए अनेक-विशेषणों का प्रयोग किया गया है, उनमें एक विशेषण है 'अमज्जमंसासी' अर्थात् मद्य-मांस का वर्जन करनेवाला। जैन-श्रावक भी मद्य-मांस का प्रयोग नहीं करते थे। सूत्रकृतांग' में जीव और शरीर को एक मानने का एक दार्शनिक-पक्ष है। उस पक्ष के विषय में विमर्श करते हुए जैन-श्रावकों ने कहा—“यदि पुनर्जन्म नहीं है, तो हम मद्य-मांस का वर्जन करते हैं, उपवास करते हैं, वह हमारी क्रिया निरर्थक हो जाएगी।" । ___मुनि और श्रावक दोनों ही मद्य-मांस का सेवन नहीं करते थे। इस अवस्था में तीर्थंकर महावीर द्वारा मांस-सेवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। सन्दर्भ-ग्रंथ 1. (क) सूत्रकृतांग, 2/2/66 । (ख) प्रश्नव्याकरण, 6/6। (ग) दशवैकालिक चूलिका, 2/7। 2. वृहत्कल्पभाष्य, गाथा 1141 । 3. सूत्रकृतांग चूर्णि, पृष्ठ 316- इहरहा हि मज्ज मंसं परिहरामो उववासं करेमो णिरत्थयं चेव। 4. भगवई वृत्ति, पत्र 691। व्यवहारनय अभूतार्थ है “व्यवहारोऽभूतार्थो भूतार्थो देशितस्तु शुद्धनय: । शुद्धनयमाश्रिता ये प्राप्नुवन्ति यतय: पदं परमम् ।।" -(पद्मनंदिपंचविंशति निश्चयपंचाशत 11 अधिकार) अर्थ :- व्यवहारनय अभूतार्थ कहा गया है और शुद्धनय भूतार्थ कहा गया है। जो यतिगण शुद्धनय का आश्रय लेते हैं, वे उत्कृष्ट पद (मोक्ष) को प्राप्त करते हैं। अत: जिन्हें व्यवहारनय को अभूतार्थ मानने में आपत्ति है और जो इसे अपना प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रहे हैं; वे विचारें कि ऐसा पूर्वाग्रह उन्हें सम्पूर्ण आगम-परम्परा और आचार्य-परम्परा के विरुद्ध खड़ा कर देगा। ** प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001 10 45
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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