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________________ हमारा कर्तव्य है कि हम इस अप्रिय-घटना का प्रतिवाद अहिंसात्मक-तरीके से करें। आज की प्रतिवाद करने की हिंसात्मक या उत्तेजनात्मक-शैली हमारे लिए उचित नहीं होगी। सही-तथ्यों की जानकारी कराने पर विद्वान्-लेखक पुस्तक को वापिस ले लेता है, तो अच्छी बात । यदि नहीं लेता है, तो फिर इसके विषय में उचित-कार्यवाही के बारे में सोचा जाना चाहिए। ___एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं और उसका अनेक संदर्भो में प्रयोग होता हैं 'काव्यानुशासन' आदि साहित्य के लाक्षणिक-ग्रन्थों में उसका बहुत सुन्दर विवेचन मिलता है। यदि भोजन करते समय कोई आदमी कहे कि "सैंधव लाओ". तो वहाँ एक समयज्ञ-व्यक्ति सैन्धव-घोड़ा (सिंधु देश का उत्तम घोड़ा) लाकर खड़ा नहीं करेगा; किन्तु वह सैन्धव-नमक (सैंधा नमक) लाकर उपस्थित कर देगा। चिकित्सा के सन्दर्भ में विचार करते समय आयुर्वेद में प्रयुक्त शब्दों के अर्थों पर ध्यान देना आवश्यक है। कपोत-शरीर संस्कृत-शब्दकोश' के अनुसार कपोत' कबूतर का वाचक है। 'आयुर्वेदीय-शब्दकोश' के अनुसार कपोत का एक पर्यायवाची नाम पारावत' है। पारावत' के फल कबूतर के अण्डों के समान होते हैं। 'पारावतपदी' आयुर्वेद में काकमजंघा' को कहते हैं। 'धन्वन्तरि निघण्टु' (पृ०189) में काकजंघा को काकमाची-विशेष माना है। काकमाची' शब्द मकोय शाक' का वाचक है। ___"साराम्लक: सारफलो रसालश्च पारावत:।" -(325) "कपोताण्डोपमफलो महापारावतोऽपरः ।।" – (कैयदेव निघण्टु, औषधिवर्ग, पृ० 62) "काकजंघा ध्वंक्षजंघा, काकपादा तु लोमशा। पारावतपदी दासी, नदीक्रांता प्रचीबला।।" -(धन्वन्तरि निघण्टु, 4/20, पृ० 186) वनस्पतिशास्त्र में कपोता, कपोतवेगा, कपोतवल्ली' जैसे शब्दों का प्रयोग मिलता हैकपोता, कपोती - साक्ष्यादिगणे रसौषधिविशेषः। कपोतवेगा - ब्राह्मी। कपोतवल्ली - सूक्ष्मैला। -(द्रव्यगुणकोषः, पृ० 39) वनस्पतिशास्त्र में पारावतपदी' का प्रयोग काकजंघा, ज्योतिष्मती और हंसपदी भेद के लिए हुआ है। (द्र० द्रव्यगुणकोष:, पृ० 112) 'भावप्रकाश निघण्ट' के अनेकार्थ-नामवर्ग में भी इसका प्रयोग 'ज्योतिष्मती' (मालकांगनी) के लिए हुआ है। -(भावप्रकाशनिघण्टु, पृ0799) उसके अनुसार पारावतपदी काकजंघा-मकोय' विषमज्वरनाशक, कफपित्तशामक, चर्मरोगनाशक है। प्राकृतविद्या- जुलाई-सितम्बर '2001 00 43
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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