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मांसाहार : एक समीक्षा
-आचार्य महाप्रज्ञ प्रो० डी०एन० झा की पुस्तक से उत्पन्न विवाद एवं विभोभ से सम्पूर्ण जैनसमाज विक्षुब्ध रहा है। वस्तुत: यह पुस्तक सतही प्रचार पाने की दृष्टि से लिखी गयी थी और इसका उद्देश्य उन विदेशी कंपनियों और पाश्चात्य धर्मों को संबल प्रदान करना था, जो भारत में मांसहार का प्रचार-प्रसार कर यहाँ की संस्कृति को विकृत करना चाहते हैं। भारतीय संस्कृति के महापुरुषों को मांसाहारी सिद्ध करने की चेष्टा के पीछे यही अभिप्राय था कि अपने महापुरुषों को मांसाहारी जानने के बाद भारत की जनता मांसाहार को अपना आदर्श-भोजन मानने में आपत्ति नहीं करेगी। संभवत: प्रो० डी०एन० झा भी अपने पूज्य महापुरुषों को मांसाहारी नहीं मानते होंगे। फिर भी अर्थलोभ एवं प्रचार के आकर्षण में वे ऐसा लिख बैई हैं, जिससे बहुत भ्रम फैल सकता हैं भगवान् महावीर के बारे में यह भ्रम श्वेताम्बर जैन-परम्परा के ग्रंथ 'भगवती सूत्र' के एक उल्लेख के आधार पर फैलाया गया था, क्योंकि दिगम्बर-परम्परा के ग्रंथों में तो भगवान् महावीर के बारे में ऐसी भ्रामक कल्पना भी कहीं नहीं की गयी है। अत: श्वेताम्बर भगवान् महावीर के बारे में ऐसी भ्रामक कल्पना भी कहीं नहीं की गयी है। अत: श्वेताम्बर जैन-परम्परा के वर्तमान एक प्रामाणिक आचार्य द्वारा इस विषय में जो स्पष्टीकरण प्रस्तुत किये गये हैं, वे 'प्राकृतविद्या' के जिज्ञासु पाठकों के लिए मननार्थ प्रस्तुत हैं।
-सम्पादक
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो० डी०एन० झा द्वारा लिखित "Holy cow - beef in Indian Dietary Conditions" पुस्तक में अनेक धर्मों के प्रमुख महापुरुषों का आहार-संबंधी विवरण दिया है, उसमें भगवान् महावीर के मांसाहार का भी उल्लेख किया गया है। इस विषय में पहले हम विद्वान् लेखक को कुछ कहना चाहते हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों के आधार पर भगवान् महावीर के मांसाहार की धारणा बना ली और अपनी पुस्तक में उसका उल्लेख कर दिया। यह शोधपूर्ण प्रामाणिक-इतिहास का तरीका नहीं है। पुस्तक के लेखक को प्रामाणिक मूल-स्रोतों से सही-तथ्य को जानना चाहिए। सही-जानकारी के बाद वे लिखते, तो अहेतुक-विवाद खड़ा नहीं होता तथा जैन-समाज में भी आक्रोश का वातावरण नहीं बनता।
भगवान् महावीर की जन्म-जयंती का वर्ष, उसके साथ घोषित हुआ है 'अहिंसा वर्ष' ।
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प्राकृतविद्या+ जुलाई-सितम्बर '2001