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________________ इस अंक के लेखक-लेखिकायें (स्व०) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी—भारतीय संस्कृति एवं हिन्दी-साहित्य जगत् के शिरोमणि मनीषियों में अग्रगण्य डॉ० द्विवेदी जी की पुष्पलेखनी से प्रसूत 'आत्मजयी महावीर' नामक विशिष्ट आलेख इस अंक का अलंकरण है। (स्व०) डॉ० बलदेव उपाध्याय—संस्कृत-साहित्य के बीसवीं शताब्दी के स्वनामधन्य लेखकों में वरिष्ठतम रहे डॉ० उपाध्याय बहुश्रुत विद्वान् थे। इस अंक में प्रकाशित 'भारतीय संस्कृति को तीर्थंकर ऋषभदेव की देन' शीर्षक आलेख आपकी लेखनी से प्रसूत है। आचार्य महाप्रज्ञ—अपने नाम का चरितार्थ करनेवाले आचार्य श्री श्वेताम्बर जैन तेरापन्थसम्प्रदाय के प्रमुख हैं। आपकी लेखनी से प्रसूत आलेख 'मांसाहार : एक समीक्षा' – इस अंक को महिमा-मण्डित कर रहा है। मिश्रीलाल जैन एडवोकेट—अशोकनगर (म०प्र०) के मूलनिवासी आप जैनसाहित्य के क्षेत्र • से सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। इस अंक के 'मंगलाचरण' के रूप में प्रकाशित 'कुन्दकुन्द वचनामृत' का हिन्दी पद्यानुवाद' आपके द्वारा रचित है। .. स्थायी पता–पुराना पोस्ट ऑफिस रोड, गुना-473001 (म०प्र०)। प्राचार्य कुन्दनलाल जैन—दिल्ली के जैन शास्त्रागारों के सूचीकरण में आपका नाम विशेषत: उल्लेखनीय रहा है। आप अच्छे गवेषी लेखक हैं। इस अंक में प्रकाशित विदिशा के बड़े जैन मन्दिर के कुछ मूर्ति-लेख' आपकी लेखनी से प्रसूत है। पता-68, श्रुतकुटी, युधिष्ठिर गली, विश्वास नगर, शाहदरा, दिल्ली-110032 डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री—आप जैमदर्शन के साथ-साथ प्राकृत-अपभ्रंश एवं हिंदी भाषाओं के विश्वविख्यात विद्वान् एवं सिद्धहस्त लेखक हैं। पचासों पुस्तकें एवं दो सौ से अधिक शोध निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। संप्रति आप भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली में उपनिदेशक (शोध) के पद पर कार्यरत हैं। इस अंक में प्रकाशित समयपाहुड : बदलने का दु:साहस पूर्ण उपक्रम' नामक लेख आपकी लेखनी से प्रसूत है। स्थायी पता-243, शिक्षक कालोनी, नीमच-458441 (म०प्र०) विद्यावारिधि डॉ० महेन्द्र सागर प्रचंडिया आप जैनविद्या के क्षेत्र में सुपरिचित हस्ताक्षर हैं, तथा नियमित रूप से लेखनकार्य करते रहते हैं। इस अंक में प्रकाशित 'श्री सम्मेदशिखर अष्टक' नामक कविता के रचयिता आप हैं। स्थायी पता—मंगल कलश, 394, सर्वोदय नगर, आगरा रोड़, अलीगढ़-202001 (उ०प्र०) आचार्य राजकुमार जैन—आप जैनदर्शन एवं आयुर्वेद शास्त्र के अच्छे विद्वान् हैं। इस अंक प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001 00 111
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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