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में प्रकाशित 'ओंकार महामंत्र और उसका प्रभाव' नामक आलेख आपके द्वारा रचित है ।
पत्राचार पता—सूरज गंज, दूसरा चौराहा, इटारसी- 461111 ( म०प्र०)
प्रो० प्रेमसुमन जैन – आप मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में कलासंकाय के अधिष्ठाता एवं प्राकृत के प्रोफेसर हैं। 'प्राकृतविद्या' के 'सम्पादक - मण्डल' के वरिष्ठ सदस्य हैं। इस अंक में प्रकाशित आलेख 'जैनधम्र का तत्त्वचिन्तन : ग्रीक दार्शनिक प्रो० हाजिमे नाकामुरा की दृष्टि में' आपके द्वारा लिखित है ।
स्थायी पता – 29, विद्याविहार कॉलोनी, उत्तरी सुन्दरवास, उदयपुर - 313001 (राज० ) । डॉ० राजेन्द्र कुमार बंसल - आप ओरियंटल पेपर मिल्स, अमलाई में कार्मिक अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुये, जैनसमाज के अच्छे स्वाध्यायी विद्वान् हैं। इस अंक में प्रकाशित 'प्राकृत-ग्रंथों में जिन - साधुओं का निवास और विहार चर्या का स्वरूप' शीर्षक आलेख आपकी लेखनी से प्रसूत है ।
पत्राचार- पता—बी०-369, ओ०पी०एम० कालोनी, अमलाई -484117 ( उ०प्र०)
डॉ० उदयचंद जैन–सम्प्रति सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज० ) में प्राकृत विभाग के अध्यक्ष हैं। प्राकृतभाषा एवं व्याकरण के विश्रुत विद्वान् एवं सिद्धहस्त प्राकृत कवि हैं । इस अंक में प्रकाशित 'छक्खंडागमसुत्त : की 'धवला' टीका के प्रथम पुस्तक के अनेकार्थ-शब्द' शीर्षक की आलेख आपकी लेखनी से प्रसूत हैं ।
स्थायी पता— गिऊकुंज, अरविन्द नगर, ग्लास फैक्ट्री चौराहा, उदयपुर - 313001 (राज०)
डॉ० रवीन्द्र कुमार वशिष्ठ – दिल्ली विश्वविद्यालय में उपाचार्य ( रीडर) पद पर सुशोभित डॉ० वशिष्ठ भारतीय लिपियों के गहन अनुसन्धाता एवं अधिकारी विद्वान् हैं। इस अंक में प्रकाशित 'ब्राह्मी लिपि और जैन - परम्परा' शीर्षक आलेख आपके द्वारा लिखित है ।
स्थायी पता — बी०वी 77बी० (पूर्वी), शालीमार बाग, दिल्ली-110088 ।
डॉo (श्रीमती) माया जैन - आप जैनदर्शन की अच्छी विदुषी हैं। इस अंक में प्रकाशित 'शब्द-स्वरूप एवं ध्वनि-विज्ञान' शीर्षक आलेख आपकी लेखनी से प्रसूत है ।
स्थायी पता—पिऊकुंज, अरविन्द नगर, ग्लास फैक्ट्री चौराहा, उदयपुर - 313001 (राज0) डॉ० सुदीप जैन – श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली में 'प्राकृतभाषा विभाग' में उपाचार्य एवं विभागाध्यक्ष हैं । तथा प्राकृतभाषा पाठ्यक्रम के संयोजक भी हैं। अनेकों पुस्तकों के लेखक, सम्पादक । प्रस्तुत पत्रिका के 'मानद सम्पादक' । इस अंक में प्रकाशित ‘सम्पादकीय’, के अतिरिक्त 'दक्षिण भारत में सम्राट् चन्द्रगुप्त से पूर्व भी जैनधर्म का प्रचार-प्रसार था' शीर्षक आलेख आपके द्वारा लिखित हैं ।
स्थायी पता – बी-32, छत्तरपुर एक्सटैंशन, नंदा फार्म के पीछे, नई दिल्ली- 110030
डॉ० जिनेन्द्र कुमार जैन —-आप जैनविश्व भारती संस्थान (मानित विश्वविद्यालय), लाड़नूँ (राज० ) में प्राकृतभाषा के 'व्याख्याता' हैं। इस अंक में प्रकाशित आलेख 'जैन आगम - साहित्य में प्रतिपादित श्रमणों के मूलगुण' आपकी लेखनी से प्रसूत है ।
पत्राचार पता — लेक्चरर्स क्वाटर्स, जैनविश्व भारती संस्थान परिसन, लाडनूँ (नागौर)
राज० ।
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प्राकृतविद्या + जुलाई-सितम्बर 2001