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________________ शौरसेनी प्राकृतभाषा के विकास के लिए कृत संकल्पित यह त्रैमासिकी - शोध पत्रिका, आचार्य विद्यानन्द जी के भाव - संसार का पुण्य प्रसून कहें, या उनकी भावनाओं का मूर्त / साकार रूप । ऐसी पत्रिका में आलेख प्रकाशित देखकर अपने को गौरवान्वित भी महसूस करता है। निर्दोष प्रिटिंग और नयनाभिराम गेटअप ने इसकी बाह्य सुन्दरता को भी प्रवर्तित रखा है। क्योंकि बाह्य कलेवर अन्तर के स्वरूप का एक सच्चा हमजोली होता है । - निहाल चंद जैन, बीना, सागर (म०प्र०) ** जैनधर्म आचार - मूलक है, जिसमें ब्रह्मचर्य पालन का अतिमहत्त्व है, इसलिये नव-बाड़ (मर्यादायें) रखने का उपदेश भी है । विजातीय तत्त्वों अलग होकर साथ में भी नहीं रखना विकार-उत्पत्ति का निमित्त न बनने के लिए आवश्यक माना गया है। मुनि / साधु और साध्वियाँ भी अलग आवास करते हैं। ऐसी स्थिति में महावीर और चन्दना का संयुक्त विशेषांक निकालना जिज्ञासोत्पादक है। 1 - हँसमुख भाई शांतिलाल शाह, मणिनगर अहमदाबाद ** महावीर - चन्दना विशेषांक वास्तव में वन्दन - योग्य है । जहाँ अंक का समसामयिकतासंबंधी सम्पादकीय-लेख भारतीय जीवन एवं संस्कृति पर महावीर जी की स्पष्ट - छाप छोड़ती है, वहीं 'सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव' आलेख वर्तमान परिस्थितियों में प्राणिमात्र के हित - हेतु जो विस्तृत विवरण व उपदेशात्मक तथ्य सामने रखते हैं, वे अत्यन्त ही उपयोगी होकर जीवन को वास्तविकरूप में सक्रियता प्रदान करने हेतु सक्षम हैं । भगवान् महावीर और उनका जीवन-दर्शन-संबंधी अंग्रेजी - भाषण का हिन्दी - अनुवाद देकर उनके जीवन के अनेक पहलुओं को जिसतरह से उजागर किया है, वह बहुत-कुछ सोचने और समझने को बाध्य करता है । अमल में लाने हेतु पहल की जाना चाहिये, तभी सार्थकता है। इसीप्रकार महावीर - संबंधी अन्य आलेख भी बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। मन की गहराई तक पहुँचने और प्राणीमात्र के कल्याण के साधन - हेतु वास्तव में एक नयी सोच जगाते हैं । महावीर जी की वन्दना आदि हेतु यत्र-तत्र बिखरी सामग्री ( समग्ररूप में ) भी उपयोगी है। अंक में दी गई पुस्तक समीक्षायें भी संक्षिप्त होने पर भी सारगर्भित है । समाचारदर्शन भी कई तथ्यों को बड़ी कुशलता से सामने रखता है । इसप्रकार सभी दृष्टियों से संयुक्तांक संग्रहणीय बन पड़ा है। — मदन मोहन वर्मा, तानसेन मार्ग, ग्वालियर ** संयुक्तांक 'जनवरी - जून 2001' 'महावीर चन्दना विशेषांक' देखा, वैसे तो 'प्राकृतविद्या' पत्रिका का प्रत्येक अंक संग्रहणीय होता है । संयुक्तांक 'महावीर - चन्दना विशेषांक' भी ऐसे ही पठनीय, मननीय, संग्रहणीय अंकों एवं विशेषांकों की श्रृंखला में एक नवीनतम सुन्दर कड़ी है। I आपका सम्पादकीय ‘भगवान् महावीर की समसामयिकता' अत्यन्त प्रासंगिक है । आपके इस कथन से पूर्णतया सहमत हूँ कि आज महावीर के अनुयायियों को मात्र ( औपचारिक ) ☐☐ 104 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर 2001
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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