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® महावीर के सर्वोदय तीर्थ पर आपका एक लेख 'प्राकृतविद्या' जून 2001 ई० के विशेषांक में पढ़ने को मिला। इसमें आपने 'गागर में सागर' भरने का प्रयास किया है। श्रमण-संस्कृति जैनधर्म, समता व अहिंसाभाव, दिगम्बरत्व, सामाजिकता और पावन-धर्म अणुव्रत आदि का वर्णन प्रभावोत्पादक एवं ज्ञानवर्धक है। भाषा की शुद्धता एवं परिमार्जितता देखने योग्य है। इस विचारोत्तेजक अंक को पढ़कर प्रसन्नता हुई।
-डॉ० निजामुद्दीन, श्रीनगर (जम्मू कश्मीर) ** 0 भगवान् महावीर के 2600वें जन्मदिवस के उपलक्ष में प्रकाशित 'महावीर चन्दना विशेषांक' की प्रति मुझे प्राप्त हुई। पुस्तक बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रकाशित हुई है और इसका आवरण पृष्ठ भी बहुत आकर्षक है। भगवान महावीर के जीवन से सम्बन्धित लेख बहुत ही प्रेरणादायक है। इस सुन्दर प्रकाशन के लिए कृपया मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें। आपने इस पत्रिका को मुझे भेजा, उसके लिये मैं आपका हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।
-प्रतापसिंह मुरड़िया, उदयपुर (राजस्थान) ** 0 प्राकृतविद्या, जनवरी-जून 2001 का संयुक्तांक 'महावीर-चन्दना' विशेषांक के रूप में प्राप्त हुआ। पूज्य आचार्य विद्यानन्द मुनि, विगत बीसवीं सदी के ऐसे प्रज्ञावान् महान् जैन-संत हैं, जिन्होंने जैनदर्शन/जैनधर्म को, विश्व-मंच पर उसकी पूर्ण वैज्ञानिकता और आध्यात्मिकता के साथ प्रतिष्ठित किया। 'राष्ट्रसंत' की यशस्वी गौरव-गरिमा के साथ जिन्होंने राजनीति के सागर में जैनधर्म का जहाज खड़ा कर, उसे पवित्रता प्रदान की।
'प्राकृतविद्या' कुन्दकुन्द भारती ऐसे आचार्य सन्त के आशीर्वाद का मूर्तिमान प्रतीक/प्रतिमान है। एक युग था, जब केवल मुनि विद्यानन्द भारतवर्ष में विश्रुत थे। आपकी प्रवचन-कला का एक जादू था। प्रवचन-प्रभावना का जो सम्मोहन, आपने जैनजगत् में प्रतिष्ठित किया है वह शोध और अन्वेषण की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ। 'प्राकृतविद्या' में पूज्य आचार्यश्री पूरे प्राणों के मुखर हैं। प्रत्येक अंक में ज्ञान-प्रकाश का जो आभा-मण्डल आपके आलेख में प्रतिबिम्बित होता है, वह वस्तुत: आपके जीवन की तप-तेजस्विता और आभीक्ष्णज्ञान के क्षयोपशम की प्रकर्षता है।
मौलिक चिन्तन और शोधपूर्ण आख्यान डॉ० सुदीप जैन के लेखन की विशिष्टता रही है। जैन-जगत् में दिगम्बर जैन परम्परा के लिए प्राकृतविद्या' का प्रकाशन एक आलोक-स्तम्भ है। तुलसीप्रज्ञा' का जो स्थान जैन-जगत् में है, वैसा ही 'प्राकृतविद्या' का है।
प्रस्तुत अंक 'भगवान महावीर' के अनछुये प्रसंगों का एक दस्तावेज़ है। डॉ० नीलम का 'युगप्रवर्तिका चन्दनबाला' वाला आलेख मर्मस्पर्शी है। सुधी-विद्वानों के 'मौक्तिक-विचार' और डॉ० सुदीप जैन की सम्पादकीय-नैष्ठिकता अत्यन्त श्लाघनीय है। डॉ० ए०एन० उपाध्ये का भगवान् महावीर से संबंधित लेख प्रासंगिक और सामयिक ही नहीं है, वरन् मौलिकता के गवाक्षों से झांकता ज्ञान का खुला आकाश दिखा रहा है।
प्राकृतविद्या- जुलाई-सितम्बर '2001
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