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________________ वस्तुतः ऐसा महनीय प्रकाशन करके प्रकाशक - संस्थान की ही प्रतिष्ठा बढ़ी है । क्योंकि अनेकों जैन समाज की प्रकाशक - संस्थायें मात्र 'ट्रेक्ट' स्तर के प्रकाशन करके अपनी वाहवाही कराने की चेष्टा करती रहती हैं। जबकि भारतीय ज्ञानपीठ जैसे यशस्वी प्रकाशन की यह परम्परा है कि उसके द्वारा भारतीय वाङ्मय का अनुसंधानपूर्ण सम्पादन एवं उसका मूलानुगामी अनुवाद तथा उच्चस्तरीय प्रकाशन किसी भी प्रकाशित कृति को गौरवान्वित करने के लिये पर्याप्त है। इस संस्थान के द्वारा ऐसे महनीय ग्रंथों के प्रकाशन की एक सुदीर्घ परम्परा है, अत: ऐसे संस्थान के द्वारा प्रकाशित होने से इस कृति की भी विद्वज्जनों में स्वत: प्रतिष्ठा बढ़ेगी तथा इसका उपयुक्त व्यक्तियों तक व्यापक प्रचार-प्रसार हो सकेगा। पौराणिक महापुरुष प्रद्युम्न के यशस्वी जीवन-चरित्र को अतिसुन्दर ढंग से गूंथकर रची गयी यह कृति हर आयुवर्ग एवं हर स्तर के व्यक्तियों के लिये सुबोधगम्य एवं प्रेरणास्पद सिद्ध हो सकेगी – ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है । इसका कथानक परम्परागत नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के साथ-साथ आधुनिक परिस्थितियों में भी बहुत प्रेरक है। मैं विदुषी संपादिका एवं प्रकाशक- संस्थान का इस प्रकाशन के लिये हार्दिक अभिनंदन करता हूँ तथा समाज के प्रत्येक वर्ग से इसका स्वाध्याय करने की अपील करता हूँ । वस्तुत: यह प्रत्येक व्यक्ति के निजी संग्रह में रखने योग्य अनुपम रचना है। ऐसे अनुपम शोधकार्य एवं उच्चस्तरीय प्रकाशन के लिये यह संस्करण सम्पूर्ण समाज के द्वारा सम्मान के योग्य है । -सम्पादक ** पुस्तक का नाम मूल लेखक सम्पादक प्रकाशक संस्करण मूल्य (2) : Samdesarasaka of Abdala Rahamana : महाकवि अद्दहमाण (अब्दुल रहमान ) प्रो० एच०सी० भयानी : प्राकृत टैक्स्ट सोसायटी, अहमदाबाद : प्रथम, 1999 ई० : 65/- (डिमाई साईज़, पेपर बैक, लगभग 120 पृष्ठ) हिन्दी एवं अपभ्रंश के संधियुगीनकाल के महाकवि अद्दहमाण मुसलमान होते हुये भी भारतीय भाषाओं एवं संस्कृति के अप्रतिम विशेषज्ञ थे । उनके द्वारा रचित 'संदेशरासक' नामक काव्य के अपभ्रंश भाषा में रचित होते हुये भी प्राकृत एवं हिन्दी इन दोनों के प्रभाव एवं विकास को भलीभाँति चित्रित करता है। इसमें भारतीय संस्कृति, दर्शन, इतिहास एवं मनोविज्ञान आदि का जैसा प्रभावी निरूपण प्राप्त होता है, वैसा अन्यत्र बहुत दुर्लभ है। इसीलिये स्वनामधन्य डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल प्रभृति मर्मज्ञ विद्वानों ने इस कृति की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। प्राकृतविद्या + अक्तूबर-दिसम्बर 2000 0095
SR No.521364
Book TitlePrakrit Vidya 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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