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साहू असोग (साहू अशोक)
-डॉ उदयचन्द्र जैन
देसे अणेग-वरसेट्ट-गुणाणुरागी, माणी सुदाणि-सुदणाणि-पमाणिगाणि। भत्तो सुदेस-अणुराग-मुणीस-मग्गी, सेट्टी असोग-गदसोग-मुधारसाणि ।। 1।।
अर्थ:- इस देश में अनेक लोग हुए। वे उत्तम से उत्तम गुणों के अनुरागी रहे हैं। वे सम्मान देनेवाले, दान में अग्रणी और श्रुतज्ञान की प्रामाणिकता को रखनेवाले रहे हैं। उनमें स्वदेशप्रेमी, आचार्य, मुनिवरों आदि के मार्गानुगामी श्रेष्ठी अशोक मानो शोक से रहित मोदरस देनेवाले थे। पुवाजणा परिजणा सुदधार-जुत्ता, वावार-खेत-णिवुणा भरहे सुपंते। सम्माण-णाम-बहुमाण-पमाण-सुत्ता, साहुत्त-संति-सिरिसंतिपसाद-साहू ।।2।।
अर्थ :- इनके पूर्वजन, परिजन श्रुतदेवता की आराधना से युक्त थे, इसलिए व्यापारक्षेत्र में निपुण हुए और सम्पूर्ण भारत के प्रान्तों में व्यापार में नाम पाया, सम्मान पाया और अत्यधिक धन की प्रामाणिकता से श्रेष्ठता अर्जित की। आपके पूर्व श्री शान्तिप्रसाद साहू विशेष शान्ति के सूत्रधार थे। सेयंस-णाम-जिणसासण-अग्गभूदो, अज्झप्पहाणि-पहुदाणि-महाहि सेट्ठी। तेसिं गुणाण अणुसारि-समग्ग-दिट्ठी, साहू असोग-जिणधम्म-सुतित्थ-पुट्ठी।।3।।
अर्थ :- श्रेयांस नाम जिनशासन में अग्रणी रहा है, वे अध्यात्मप्रधानी, अत्यधिक दानी एवं प्रमुख श्रेष्ठी रहे। उनके गुणों का अनुसरण इनकी पूर्णदृष्टि रही है। साहू अशोक ने जैनतीर्थ रक्षा से जिनधर्म को अधिक सुरक्षित किया है। 'तित्थेण रक्ख-सुददंसण-रक्खेणेणं, संवड्ढणेण सपगासण-कारणेणं। होंजेदि एस पहुभावण-भावणं च, णेदूण साहु-सुदधम्मपहावणं च ।। 4।।
अर्थ :- यह तो सत्य है कि तीर्थरक्षा, श्रुतदर्शन, श्रुतरक्षण, श्रुत-संवर्धन एवं श्रुतप्रकाशन के कारण से श्रुतधर्म की प्रभावना होती है। यही प्रभुत्व एवं बलवती भावना लेकर साहू अशोक श्रुतप्रभावना करते रहे।
प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000
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