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________________ मलधारी माधवचन्द्र के विषय में कवि ने लिखा है कि वे मलधारीदेव माधवचन्द्र मुनिपुंगव मानों धर्म, उपशमवृत्ति एवं इन्द्रियजय की प्रत्यक्षमूर्ति थे। वे क्षमागुण, इच्छा-निरोध तथा यम-नियम से समृद्ध थे। इस वर्णन से विदित होता है कि माधवचन्द्र घोर तपस्वी एवं साधक थे। सम्भवत: उन्होंने किसी ग्रन्थ का प्रणयन नहीं किया, अन्यथा कवि उसके विषय में संकेत अवश्य करता। उनके शिष्य अमृतचन्द्र भट्टारक के विषय में कवि ने लिखा है कि “मलधारी देव माधवचन्द्र के शिष्य अमृतचन्द्र भट्टारक थे, जो तपरूपी तेज के दिवाकर, व्रत-तप, नियम एवं शील के रत्नाकर, तर्कशास्त्र रूपी लहरों से झंकृत, परम-श्रेष्ठ तथा व्याकरण के पाण्डित्य से अपने पद का विस्तार करने वाले थे। जिनकी इन्द्रिय-दमन रूपी वक्र-भृकुटि देखकर मदन भी आशंकित होकर प्रच्छन्न ही रहा करता था।" विद्वानों में श्रेष्ठ वे अमृतचन्द्र भट्टारक अपने शिष्यों के साथ-साथ नन्दन-वन से आच्छादित मठों, विहारों एवं जिन-भवनों से रमणीक बम्हडवाडपट्टन पधारे।"" कवि के इस वर्णन से यह तो विदित हो जाता है कि अमृतचन्द्र भट्टारक तपस्वी, साधक एवं विद्वान् थे; किन्तु उनका क्या समय था. इसका पता नहीं चलता। कवि ने बम्हडवाडपट्टन के तत्कालीन शासक भुल्लण का उल्लेख अवश्य किया है, जो राजा अर्णोराज, राजा बल्लाल एवं सम्राट कुमारपाल का समकालीन था। उनका समय चूँकि वि०सं० 1199 से 1229 के मध्य सुनिश्चित है, अत: उसी आधार पर भट्टारक अमृतचन्द्र का समय भी वि०सं० की 12वीं सदी का अन्तिम चरण या 13वीं सदी का प्रारम्भ रहा होगा। समकालीन शासक 'महाकवि सिद्ध ने बल्लाल को 'शत्रुओं के सैन्य-दल को रौंद डालने वाला' तथा 'अर्णोराज के क्षय के लिए काल के समान'' जैसे विशेषण प्रयुक्त किए हैं, जो बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं। कवि का संकेत है कि अर्णोराज बड़ा ही बलशाली था। उस के शौर्य-वीर्य का पता इसी से चलता है कि कुमारपाल जैसे साधन-सम्पन्न एवं बलशाली राजा को उस पर आक्रमण करने के लिए पर्याप्त गम्भीर योजना बनानी पड़ी थी। लक्षग्रामों के अधिपति अर्णोराज ने सिद्धराज जयसिंह के विश्वस्त-पात्र उदयनपुत्र बाहड़ (अथवा चाहड़) जैसे एक कुशल योद्धा एवं गजचालक, वीर-पुरुष को कुमारपाल के विरुद्ध अपने पक्ष में मिला लिया था। इसके साथ-साथ उसने अन्य अनेक राजाओं को भी धमकी दे कर अथवा प्रभाव दिखा कर अपने पक्ष में मिला लिया था।" मालवनरेश बल्लाल के साथ भी उसने सन्धि कर ली थी और कुमारपाल के विरुद्ध धावा बोल दिया था। कमारपाल उसकी शक्ति एवं कौशल से स्वयं ही घबराया हुआ रहता था। कवि सिद्ध को अर्णोराज की ये सभी घटनायें सम्भवत: ज्ञात थीं। किन्तु ऐसे महान् कुशल, वीर, लड़ाकू एवं साधन-सम्पन्न (चाहमान) राजा अर्णोराज के लिए भी राजा बल्लाल को 'क्षय-काल के समान' बताया गया है। इससे यही ध्वनित होता है कि बल्लाल अर्णोराज से भी अधिक प्रतापी नरेश रहा होगा। यद्यपि उसने प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000 40 47
SR No.521364
Book TitlePrakrit Vidya 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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