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समस्वार्थ-विशेष के कारण किसी अवसर पर अर्णोराज के साथ राजनैतिक सन्धि कर ली थी। अर्णोराज एवं बल्लाल के बीच युद्ध होने के प्रमाण नहीं मिलते। अत: प्रतीत यही होता है कि अर्णोराज बल्लाल से भयभीत रहता होगा। इसीलिए कवि ने बल्लाल को अर्णोराज के लिए 'क्षयकाल के समान' कहा है।
कवि द्वारा बल्लाल के लिए प्रयुक्त 'शत्रु-दल-सैन्य का मन्थन कर डालने वाला' विशेषण का अर्थ भी स्पष्ट है। बल्लाल की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर आचार्य हेमचन्द्र को लिखना पड़ा कि 'अर्णोराज पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् कुमारपाल को यह सलाह दी गयी कि वह मालवाधिपति बल्लाल को पराजित कर यशार्जन करें। इससे यह प्रतीत होता है कि कुमारपाल ने भले ही अनेक राजाओं पर विजय प्राप्त कर ली हो, किन्तु बल्लाल पर विजय प्राप्त किये बिना उसका राज्य निष्कंटक न हो पाता तथा उसे यश: प्राप्ति सम्भव न होती। बल्लाल ने कुमारपाल के आक्रमण के पूर्व उसके दो विश्वस्त सेनापतियों विजय एवं कृष्ण को फोड़कर अपने पक्ष में मिला लिया था। इसप्रकार कुमारपाल बल्लाल से भी आतंकित हो गया था, कभी-कभी उसे उस पर विजय प्राप्त करने में सन्देह भी उत्पन्न हो जाता होगा, फिर भी उसने अपनी पूरी तैयारी कर उस पर आक्रमण किया और अन्तत: उसे पराजित कर दिया।" बडनगर-प्रशस्ति का यह उल्लेख कि “कुमारपाल ने मालवाधिपति बल्लाल का शिरच्छेद कर उसका मस्तक अपने राजप्रासाद के द्वार पर लटका दिया था"," यह कथन वस्तुत: बल्लाल की दुर्दम शक्ति एवं पराक्रम के विरुद्ध कुमारपाल के संचित क्रोध का ही ज्वलन्त उदाहरण है।
अर्णोराज के लिए क्षयकाल के समान तथा रिपु-सैन्य-दल का मन्थन कर देनेवाला यह बल्लाल कौन था? इसके विषय में विद्वानों ने अपने-अपने अनुमान व्यक्त किये हैं, किन्तु । वे सर्वसम्मत नहीं हैं।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार ल्यूडर्स के अनुसार अज्ञातकुलशील बल्लाल ने परमारवंशी यशोवर्मन् को पराजित कर मालवा के कुछ अंश को हड़प लिया था। श्री सी०वी० वैद्य के अनुसार 'बल्लाल' शब्द एक विरुद (अपरनाम) था, जो कि उक्त यशोवर्मन् (परमार) के प्रथम पुत्र राजकुमार जयवर्मन् के साथ संयुक्त था। मालवा के अभिलेखों में बल्लाल नाम के किसी भी राजा का उल्लेख नहीं है , जब कि उक्त जयवर्मन् को होयसल-नरेश नरसिंह-प्रथम की सहायता से कल्याणी के चौलुक्य-नरेश जगदेकमल्ल (वि०सं० 11961207) ने पराजित कर मालवा का राज्य हड़प लिया था। उक्त चौलुक्यवंशी जगदेकमल्ल
का आक्रमण मैसूर के एक शिलालेख से प्रमाणित है।" उसके प्रकाश में अध्ययन करने से यह प्रतीत होता है कि 'बल्लाल' यह नाम 'दाक्षिणात्य' है। अत: वह परमार-वंशी जयवर्मन् का अपरनाम नहीं हो सकता। इसमें कुछ भी तथ्य प्रतीत नहीं होता कि उत्तर-भारत का कोई राजा अपना नाम दाक्षिणात्यों के नाम-साम्य पर रखता।
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000