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नव-खिष्टाब्दि अष्टक
-विद्यावारिधि डॉ० महेन्द्र सागर प्रचंडिया नये वर्ष पर कीजिये, नया-नया संकल्प। सदाचार-सत्कर्म का, होवे नहीं विकल्प ।।1।।
सौख्य 'औ समृद्धि का, सत्य-अहिंसा-सार। इस पर चलकर सब करें, जीवन का उद्धार ।। 2 ।।
शाकाहारी हम बनें, शाकाहारी देश। पशु-पक्षी खुशहाल हों, पा सन्मति-सन्देश।।3।।
व्यसन-मुक्त हर श्वास हो, फैले शील-सुगंध । समता के संचार से, मिटे द्वेष-दुर्गध ।।4।।
प्रामाणिक जीवन जियें, करके श्रम सातत्य। होय हृदय से अतिथि का, हर घर में आतिथ्य ।। 5।।
संतों की हो वन्दना, गुणी-जनों का मान। मंत्रों की अनुगूंज से, सबको हो कल्याण ।। 6।।
घर-घर में दीपक जलें, फैले प्रेम-प्रकाश । हर वाणी में घुली हो, अमृतमयी मिठास।।7।।
ज्ञान और श्रद्धान से, खुलें भाग्य के द्वार। हर घर में होने लगे, नित्य मंगलाचार ।।8।।
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000