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जैन-आचार्यों एवं कवियों ने लगभग 65 प्रतिशत से भी अधिक विवधि विधाओंवाले अपभ्रंश-साहित्य का प्रणयन किया है। इतर साक्ष्यों तथा नवांगी जैन-मन्दिरों में सुरक्षित उनकी सचित्र एवं सामान्य पाण्डुलिपियाँ तथा उनकी प्रशस्तियाँ इसका स्पष्ट उद्घोष कर रही हैं। देश-विदेश के प्राच्यविद्याविदों एवं भाषाविज्ञानियों ने उसे मील-पत्थर मानकर मुक्तकण्ठ से उसकी प्रशंसा की है। इस साहित्य की अनेक पाण्डुलिपियाँ एशियाई एवं यूरोपीय देशों के अनेक शास्त्र-भाण्डारों में भी येन-केन प्रकारेण ले जाई गई हैं। वहाँ उन (पाण्डुलिपियों) की क्या स्थिति है? – इसकी विस्तृत जानकारी नहीं मिल सकी है।
जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, उसमें प्राच्य एवं मध्यकालीन इतिहास, संस्कृति, समाज एवं लोकजीवन का विविध चरितों एवं कथाओं के माध्यम से सजीव चित्रण हुआ है। हिन्दी एवं अन्य प्रादेशिक भाषाओं एवं साहित्य के विकास की कथा का परिज्ञान तथा लोकाभिप्रायों एवं कथानक-रूढ़ियों का अध्ययन, अपभ्रंश-भाषा एवं उसके साहित्य के अध्ययन के बिना सम्भव नहीं। अत: यह आवश्यक है कि उनके बहुआयामी विस्तृत अध्ययन-हेतु अद्यावधि अप्रकाशित अपभ्रंश-ग्रन्थों की खोजकर उनका तत्काल प्रकाशन किया जाये। __ यूनान, चीन, मिश्र, श्रीलंका, दक्षिण-पूर्व एशिया एवं अरब देशों के उपलब्ध कुछ लोक-साहित्य का अध्ययन करने से ऐसा ज्ञात होता है कि कोटिभट्ट श्रीपाल; चारुदत्त, भविष्यदत्त, जिनेन्द्रदत्त एवं अचल जैसे प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय महासार्थवाहों एवं उनके रूपों में सांस्कृतिक दूतों के माध्यम से अनेक भारतीय कथाओं का यहाँ से उक्त देशों में गमन हुआ है। डॉ० हर्टेल, डॉ० मोरिस विंटरनिट्ज', डॉ० ओटो स्टेन, डॉ० कालिदास नाग, डॉ० कामताप्रसाद, डॉ० मोतीचन्द्र एवं डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल आदि के तुलनात्मक अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार उनमें अधिकांश जैन-कथायें थीं, जिन्होंने उन देशों के जनमानस के साथ-साथ वहाँ के साहित्य को भी प्रभावित किया है। वर्तमान में इनके तुलनात्मक अध्ययन के महती आवश्यकता है। ___ आइने-अकबरी के सुप्रसिद्ध लेखक अबुल-फज़ल एवं 'खुश्फहम' (सम्राट अकबर द्वारा प्रदत्त) उपाधिधारी विख्यात जैनाचार्य भानुचन्द्र-सिद्धिचन्द्र गणी (महाकवि बाणभट्टकृत कादम्बरी के आद्य टीकाकार) के कुछ उल्लेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन प्रचलित कुछ जैन-कथाओं का फारसी में भी अनुवाद किया गया था और वहाँ का सहस्ररजनी-चरित (Arabian Nights) का मूलाधार कुछ हेर-फेर के साथ अधिकांश वही कथायें रही होंगी।
मध्यकालीन विविध साहित्यिक शैलियों की दृष्टि से तो जैन-कथा-साहित्य का महत्त्व है ही, पूर्वोक्त चारुदत्तचरित, श्रीपालचरित एवं भविष्यदत्तचरित जैसे कथाकाव्यों तथा
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000