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________________ प्राकृत काव्य-शैलीका दूरगामी प्रभाव -कलानाथ शास्त्री प्राकृतभाषा के साहित्य की आज के युग में चर्चा प्राय: गिने-चुने व्यक्तियों तक सीमित रह गयी है। तथा कुछ विद्वानों के पूर्वाग्रही प्रचार से भी भारतीय भाषाओं एवं साहित्य की प्राकृत-उपजीव्यता का बोध नष्टप्राय: हो गया है। ऐसी स्थिति में एक वरिष्ठ संस्कृत विद्वान् के द्वारा इतर साहित्य में प्राकृत-साहित्य के प्रभाव को दर्शानेवाला यह आलेख अवश्य ही पठनीय, मननीय है तथा इसका समुचित प्रचार-प्रसार भी अपेक्षित है। –सम्पादक भारतीय वाङ्मय ने वेद की 'छान्दस' भाषा, क्लासिक संस्कृत की अभिजात भाषा, प्राकृत, पाली और अपभ्रंश की लोकभाषाओं तथा आधुनिक भारतीय भाषाओं के साहित्य तक अभिव्यक्ति शैलियों, उक्त भंगिमाओं और विदग्ध-वचनों (जिन्हें 'अन्दाजे-बयाँ' कहा जा सकता है) का इतना वैविध्य देखा है कि उसका विश्लेषण तथा तुलनात्मक अध्ययन सरल कार्य नहीं है। कुछ अभिव्यक्ति विधायें ऐसी हैं, जो वेद में बहुतायत से पाई जाती हैं, वैदिक शैली की पहचान हैं; किन्तु क्लासिकी संस्कृत में परिगृहीत नहीं हुईं जैसेकिंस्विद्वनं क उ स वृक्ष आस या कथा जाते कवय: को विवेद की प्रश्नोत्तर-शैली या पश्य देवस्य काव्यं न ममार न जीर्यति में विस्मय-योजना जबकि हमारी लोकभाषाओं और आधुनिक साहित्य में खूब फबती रही हैं, लगता है वे वेद से प्राकृतों में होती हुई आधुनिक लोकभाषाओं तक आई हैं। क्लासिकी संस्कृत के सांगरूपक और श्लेष जैसे अलंकार (सभंग और अभंग) उसके अपने हैं, जो अन्य भाषाओं में उतर ही नहीं सकते —पृथुकार्तस्वरपात्रं भूषितनि:शेष-परिजनं देव में भू+उषित, पृथु+कार्तस्वर और भूषित तथा पृथुक+आर्तस्वर आदि व्युत्पादित पदगत सभंग-श्लेष केवल संस्कृत का ही वर्ग-चरित्र है; अन्य भाषाओं में यह क्षमता नहीं है। इसके विपरीत प्राकृत और अपभ्रंश आदि की कुछ ललित अभिव्यक्तियाँ, जो हृदय की सहज भाव-प्रवणता से उपजी तथा माटी की सौंधी गंध लिए हुए हैं, अपनी अलग पहचान रखती हैं, जो अभिजात संस्कृत में रच-बसकर नहीं फैल पाईं, या तो अनुवाद या उद्धरणमात्र तक सीमित रह गईं या कुछ कवियों और काव्यों में ही रच-बस पाईं ऐसा लगता है (हो सकता है उनका सूत्रपात पाली की गाथाओं से ही हो गया हो)। प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000 0027
SR No.521364
Book TitlePrakrit Vidya 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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