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________________ वही ब्रह्म पद का अधिकारी होता है और वही अपने अमृत-प्रवचनों से दु:खों से प्रपीड़ित जग को मूल तत्त्व से अवगत करा पाता है। सन्दर्भ-सूची :1. एकं सत्' - (ऋग्वेद, 1/164/46) __ सत् का परमार्थ लक्षण निश्चय से ही अर्थक्रियाकारित्व है। 2. 'तथैवाचक्षुदर्शनावरणीयकर्मक्षयोपशमेन स्पर्शन।' –(नियमसार टीका, गाथा 14) 3. 'असंख्येयं लोकमात्र-संयम-परिणामेष:।' – (आचार्य वीरसेन, धवला, 1/1/120) 4. 'आऊ' इति पुल्लिंगांत: प्राकृतलक्षणवशात्। -(पण्णवणा, 367 मलयगिरी) 5. (1) पृथ्वीकायिक 7 लाख, (2) जलकायिक 7 लाख, (3) अग्निकायिक 7 लाख, (4) वायुकायिक 7 लाख, (5) वनस्पतिकायिक 10 लाख । अग्नि-विषयक कविता अस्त हो रहा सूर्य सोचता मेरा काम करेगा कौन? अंधकार के महा-उदधि में ज्योति-प्रकाश भरेगा कौन? सभी निरुत्तर थे, आतुर थे सभी दीखते थे निरुपाय, तभी एक माटी का दीपक बोला बनकर विश्व-सहाय तुम प्रकाश के पुंज और मैं नन्हा-सा दीपक श्रीमान् जब तक अन्तिम सांस, करूँगा मैं प्रकाश का ही गुणगान । मूल बांग्ला रचयिता - गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर हिन्दी अनुवाद - डॉ० शेरजंग गर्ग ** श्रुतपंचमी और बाहह्मी लिपि “शुभे शिलादावुत्कीर्य श्रुतस्कन्धमविन्यसेत् । ब्राह्मीन्यास-विधानेन श्रुतस्कन्धमिह स्तुयात् ।। सुलेखकेन संलिख्य परमागम-पुस्तकम्। ब्राह्मीं वा श्रुतपंचम्यां सुलग्ने वा प्रतिष्ठयेत् ।। –(पं० शिवाशाधर, प्रतिष्ठापाठ, 6/33-34) अर्थ :- शुभमुहूर्त में शिलादि में उत्कीर्ण करके श्रुतस्कन्ध की भी स्थापना करें, फिर ब्राह्मी लिपि के न्यास-विधान से श्रुतस्कन्ध की स्तुति करें। सुलेखपूर्वक परमागम पुस्तक अथवा ब्राह्मी-लिपि में लिखकर श्रुतपंचमी (ज्येष्ठशुक्ल पंचमी) के दिन (शुभमुहूर्त) में उसकी स्थापना करें। ** 0020 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000
SR No.521364
Book TitlePrakrit Vidya 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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