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________________ सहस्रों वर्ष पूर्व जैनदर्शन ने इस सत्य को प्रमाणित किया था । उसके अनुसार सारा शरीर सीमितरूप में हर इन्द्रिय का कार्य करने में समर्थ है। अंधी कन्यायें उंगलियों से पढ़ लेती हैं। कैसे? विज्ञान अभी तक नहीं जानता। वह नहीं जान सका कि आँख का काम उंगलियाँ कैसे कर लेती हैं; किन्तु जैनधर्म ने इसको समझा था । जैन आचार्यों ने 'संभिन्नस्रोतोपलब्धि' का वर्णन किया है। यह लब्धि चेतना को इतना विकसित करती है कि समूचा शरीर आँख, कान, नाक, जिह्वा और स्पर्शन का काम करने लगता है। वह शरीर के किसी भी हिस्से से देख सकता है, सुन सकता है, चख सकता है और सूँघ सकता है। पाँचों इन्द्रियों का काम समूचे शरीर से ले सकता है । सारा शरीर हर इन्द्रिय का कार्य करने में समर्थ है। स्पर्शन - इन्द्रियवाले जीव और पंचेन्द्रिय जीव में कोई अन्तर नहीं होता । दोनों में क्रियायें और प्रवृत्तियाँ समान होती हैं। इनमें स्पर्शन - इन्द्रिय की प्रधानता ही कार्यकारी है । अग्निकायिक जीवों की उत्कृष्ट आयु 3 दिन-रात होती है— 'रत्तिं दिणाणि तिणि' (मूलाचार, 11 / 59 ) । यह जीव 'वेद' (Sex) की अपेक्षा से नपुंसकलिंगी होता है । - ऐसा उल्लेख जैन-ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर मिलता है । बाह्य रूप से अग्नि के महत्त्व को समूचा विश्व जानता है। घरेलू कार्यों से लेकर युद्ध के भयावह अस्त्र-शस्त्रों तक अग्नि का प्रयोग करते ही हैं। संसार अग्नि के महत्त्व को जानता है । अग्नि के उपकारक स्वरूप पर भी विद्वानों ने अपने चिंतन प्रस्तुत किये हैं । अग्नि जलती-जलाती है एवं प्रकाशित करती है – ये सब उसके उपकारक स्वरूप हैं । यहाँ एक प्रश्न है कि मनुष्य दीपक को लेकर जाता है, तो मनुष्य का उपकार दीपक पर हुआ, दीपक का मनुष्य पर नहीं। इसका उत्तर है कि मनुष्य दीपक को अपना स्वार्थ साधने के लिये ले जाता है । अंधकार में वह देख नहीं पाता; किन्तु दीपक के आने पर प्रकाश हो जाता है और वह देखने योग्य हो जाता है। निष्कर्ष है कि दीपक का मनुष्य पर उपकार है 1 साधु की कुटिया सूनी है, वह अंधकार - ग्रस्त है । जंगल में होने के कारण कहीं से प्रकाश की क्षीण-रेखा भी नहीं आ पाती। उस कुटिया में दीपक रात भर जलता है। स्वयं को जला-जला कर मृत्यु की ओर अग्रसर होता है; किन्तु उसको इसकी चिन्ता नहीं है। वह सूनी कुटिया के कोने में रजनी-भर जलकर प्रसन्न होता है । कवि जयशंकर प्रसाद ने लिखा है, “सूनी कुटिया के कोने में रजनी-भर जलते जाना ।” दीपक रातभर अंधरे से लड़ते हुये प्रात: काल बुझता है, वैसे ही ज्ञानी लोग अज्ञान से जीवनभर लड़ते-लड़ते अंत में मोक्ष को जाते हैं । al थम (आचार्य महाप्रज्ञ) ने 'अग्नि जलती है' नामक अपनी पुस्तक में लिखा है कि "अग्नि इसलिये नहीं जलती कि कोई उस पर पैर रख दे और वह उसे जला डाले । प्राकृतविद्या�अक्तूबर-दिसम्बर '2000 0017
SR No.521364
Book TitlePrakrit Vidya 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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