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________________ शिक्षा व संस्कृति के उत्थान की महान् प्रेरिका: चिरोंजाबाई –श्रीमती बिन्दु जैन पृष्ठभूमि सभी कलाओं व विद्याओं में सुसम्पन्न हमारा 'भारत' देश जब 19वीं शताब्दी में दासता की वेदना से आहत व जर्जर था, तब मध्यभारत का 'बुंदेलखण्ड' क्षेत्र को भी साधन-विहीन बनाने में अंग्रेजों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। बुंदेलखण्ड अशिक्षा, अज्ञान, अंधविश्वास के अंधकार में आच्छन्न था। ऐसे विषम समय में केवल बुंदेलखण्ड क्षेत्र को ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष को माँ चिरोंजाबाई के रूप में एक अभूतपूर्व वरदान मिला। एक महिला ने शिक्षा के क्षेत्र में विशेष रूप से संस्कृत, प्राकृत, व्याकरण व न्याय आदि के क्षेत्र में जागरण का ऐसा मंत्र फूंका कि गाँव-गाँव में, शहर-शहर में पाठशालायें, विद्यालय, महाविद्यालय व उदासीन आश्रम खुल गये। जन-जन पढ़ने का एवं विज्ञ-जन पढ़ाने का संकल्प लेकर विद्यालयों में दाखिल हो गये। उनके मंगलमयी हाथों का ऐसा प्रभाव था कि अधिकांश शिक्षण-संस्थायें आज भी सुचारुरूप से चलती हैं; कुछ को सरकारी अनुदान प्राप्त है व कुछ सामाजिक लोगों के प्रतिदान से चलती हैं। जिनमें शिक्षित एक करोड़ से अधिक विद्वान् व विदुषी महिलायें ज्ञान के प्रकाश में माँ भारती को प्रकाशित कर चुके हैं। और यह क्रम अब भी अनवरतरूप से चालू है। संक्षिप्त जीवन परिचय चिरोंजाबाई' को सभी जन बाईजी' कहकर पुकारते थे। चिरोंजाबाई' का जन्म 'शिकोहाबाद' के एक धार्मिक परिवार में हुआ। उनके पिता मौजीलाल' ने 18 वर्ष की आयु में सिमरा' ग्राम (जिला टीकमगढ़, म०प्र०) के 'भैयालाल' जी सिंघई से इनका विवाह कर दिया। विवाह के कुछ समय उपरान्त तीर्थयात्रा के समय ‘पावागढ़' नामक तीर्थस्थान पर उनके पति का स्वर्गवास हो गया और विवाह के कुछ समय उपरान्त ही आप विधवा हो गईं। वैधव्य की वेदना से इतना आंदोलित हुई कि कुयें पर आत्महत्या के इरादे से गईं; किन्तु वहाँ पर उनका विवेक जागृत हुआ कि जिनका संयोग होता है, 0046 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000
SR No.521363
Book TitlePrakrit Vidya 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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