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(3) काल-शुद्धि (1) ग्रहण-काल - चन्द्र-ग्रहण या सूर्य-ग्रहण के काल में भोजन न बनाया जाये। (2) शोक-काल – शोक, दुःख अथवा मरण के समय भोजन न बनाया जाये। (3) रात्रि-काल - रात्रि के समय भोजन नहीं बनाना चाहिये। (4) प्रभावना-काल- धर्म-प्रभावना अर्थात् उत्सव-काल के समय भोजन नहीं
बनाना या बनवाना चाहिये।
(4) भाव-शुद्धि (1) वात्सल्य-भाव - पात्र और धर्म के प्रति वात्सल्य होना चाहिये। (2) करुणा-भाव - सब जीवों एवं पात्र के ऊपर दया का भाव रखना चाहिये। (3) विनय-भाव - पात्र के प्रति विनय का भाव होना चाहिये। (4) दान-भाव - दान करने का भाव रहना चाहिये।
कषाय-रहित और हर्ष-सहित भोजन हितकारी होता है। इसी क्रम में यह जान लेना भी अपेक्षित है कि किस भोज्य-पदार्थ की किस ऋतु में कितने दिनों की मर्यादा है? इसे निम्नलिखित चार्ट से अच्छी तरह समझा जा सकता है
लं
क्रमांक पदार्थ 1. बूरा
सर्व प्रकार का आटा सर्व प्रकार का पिसा हुआ मसाला (क) नमक पिसा हुआ, (ख) नमक में मसाला मिला देने पर (ग) नमक को गर्म करने पर दूध दुहने के पश्चात् दही (गर्म दूध का) (क) छाछ बिलोते समय गर्म पानी
डालें तो (ख) छाछ में पीछे पानी ठंडा डालें तो घी, तेल, गुड़ अधिक जल वाले पदार्थ, रोटी, पूरी, हलुआ, बड़ा सेव, बूंदी आदि । तेल या घी में तले हुए पदार्थ, पापड़,
बड़ी, सेमइंया आदि 10. खिचड़ी, कड़ी, दाल, भात, तरकारी 11. बिना पानी के पकवान
शीतकाल ग्रीष्मकाल वर्षाकाल एक मास 15 दिन 7 दिन 7 दिन 5 दिन 3 दिन । 7 दिन 5 दिन 3 दिन 48 मि० 48 मि० 48 मि० । 6 घण्टे 6 घण्टे 6 घण्टे 24 घण्टे 24 घण्टे 24 घण्टे 48 मि० 48 मि० 48 मि० 24 घण्टे 24 घण्टे 24 घण्टे 12 घण्टे 12 दिन 12 दिन
48 मि० 1 वर्ष 12 घण्टे
48 मि० 1 वर्ष 12 घण्टे
48 मि० 1 वर्ष 12 घण्टे
6 घण्टे 5 दिन
6 घण्टे 5 दिन
6 घण्टे 5 दिन
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प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000