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________________ 2. अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग आचार्यश्री विद्यानन्द मुनि 9-20 'कुमार: श्रमणादिभि:' सूत्र का बौद्ध-परंपरा से संबंध नहीं डॉ० सुदीप जैन 21-23 जैनसमाज का महनीय गौरवग्रंथ : ‘कातंत्र-व्याकरण' प्रो० (डॉ०) राजाराम जैन 24-29 कातंत्र-व्याकरण और उसकी उपादेयता डॉ० उदयचंद जैन 30-33 6. हंसदीप : जैन-रहस्यवाद की एक उत्प्रेरक कविता प्रो० (डॉ०) विद्यावती जैन 34-37 7. आगम-मर्यादा एवं निर्ग्रन्थ श्रमण श्रीमती रंजना जैन 38-41 8. एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न का समाधान पं० नाथूलाल शास्त्री 42-44 9. गोरक्षा से अहिंसक संस्कृति की रक्षा आचार्यश्री विद्यानन्द मुनि 45-50 10. श्रुतज्ञान और अंग-वाङ्मय राजकुमार जैन 52-57 11. आचार्यश्री विद्यानंद जी सामाजिक चेतना डॉ० माया जैन 58-60 12. णक्खत्त-वण्णणं 62-65 13. अहिंसक अर्थशास्त्र श्रीमती रंजना जैन 66-68 14. जैनदर्शनानुसार शिशु की संवेदन-शक्ति श्रीमती अमिता जैन 69-73 15. मनीषी साधक : पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ डॉ० प्रेमचंद रांवका 74-77 16. भट्टारक-परम्परा एवं एक नम्र निवेदन पं० नाथूलाल शास्त्री 80-81 भट्टारक-परम्परा डॉ० जयकुमार उपाध्ये 82-85 ___ अपभ्रंश के 'कडवक छंद' का स्वरूप-विकास प्रो० (डॉ०) राजाराम जैन 86-89 पुस्तक समीक्षा1. मूलसंघ और उसका प्राचीन साहित्य : 2. पाहुडदोहा (मराठी) 3. जैन-आगम प्राणी-कोश | डॉ० सुदीप जैन 90-95 4. गोम्मटेश्वर बाहुबलि एवं श्रवणबेल्गोल : __इतिहास के परिप्रेक्ष्य में 5. गौरवगाथा : आचार्यश्री विद्यानन्द 6. भारतीय परंपरा में व्रत : अवधारणा तथा विकास न लोक मर्यादा और वचन प्रयोग “धम्मसभा णिव-पंचय, जादि लोयाय बंधुवग्गं णाणी। इण विरुद्धं वच करदि, स च सठ लोगणिंद दुक्खलहो।।" -(सुदिट्ठि-तरंगिणी, 100) अर्थ:—यदि कोई व्यक्ति ज्ञानी होने पर भी धर्मसभा, राजसभा, पंचायती सभा, जातिगत सभा, लोकसभा और बन्धुवर्ग के विरुद्ध सत्य को भी बोलता है, तो वह 'शठ' कहलाता है, लोकनिंद्य होता है और तो और मानसिक दुःख को भी प्राप्त होता है। ** प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000 1079
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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