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________________ आचार्यश्री विद्यानन्द मुनि 11-15 मुनि कनकोज्ज्वलनंदि 16-17 दिगम्बर जैन श्रावकों एवं विद्वानों को त्यागियों की समीक्षा का पूर्ण अधिकार है णमोकार मंत्र में 'लोए' एवं 'सव्व' पदों की विशेषता गृहस्थों को भी धर्मोपदेश का अधिकार एक: शरणं शुद्धोपयोगः तीर्थंकर की दिव्यध्वनि की भाषा 7. यापनीय : एक विचारणीय बिन्दु 8. सम्राट् खारवेल की अध्यात्म-दृष्टि 9. धरसेन की एक कृति : जोणिपाहुड 10. कातन्त्र-व्याकरण एवं उसकी दो वृत्तियाँ 11. आचार्य कुन्दकुन्द का आत्मवाद 12. डॉ० हुकमचंद भारिल्ल 13. भारतीय शिक्षण-व्यवस्था एवं जैन विद्वान् 14. समयसार के पाठ, कं० 16 15. जैनदर्शन के प्रतीक पुरावशेष 16. आचार्यश्री के संकलन से 17. जलगालन-विधि तथा महत्ता 18. प्राकृत तथा अपभ्रंश काव्य और संगीत जैनधर्म और अंतिम तीर्थंकर महावीर पुस्तक समीक्षा 1. पाहुडदोहा (ज्ञानपीठ) 2. सम्राट् खारवेल (कन्नड़) 3. प्रतिष्ठा-प्रदीप 4. अंगकोर के पंचमेरु मंदिर स्व० पं० माणिकचंद्र कौंदेय 18-19 डॉ० सुदीप जैन 20-24 पं० नाथूलाल शास्त्री 25-28 डॉ० सुदीप जैन 29-32 श्रीमती रंजना जैन 33-35 आचार्य नगराज 36-49 डॉ० रामसागर मिश्र 50-53 डॉ० महेन्द्रसागर प्रचंडिया 54-56 श्रीमती ममता जैन 57-60 श्रीमती अमिता जैन 61-63 डॉ० सुदीप जैन 65-69 डॉ० कस्तूरचंद सुमन 70-73 डॉ० सुदीप जैन 74-78 डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री 79-82 83-85 डॉ० रमेशचन्द्र जैन 86-89 डॉ० सुदीप जैन 95-99 वर्ष 11, अंक 1, अप्रैल-जून 1999 ई० क्र०सं० आलेख का शीर्षक लेखक पृष्ठ संख्या 1. प्रातिभ-प्रतिष्ठा की परम्परा और जैन प्रतिभायें (संपादकीय) डॉ० सुदीप जैन 5-8 2. पहिले तौलो फिर बोलो आचार्यश्री विद्यानन्द मुनि 9-13 3. तीर्थंकर-दिव्यध्वनि-भाषा से श्वेताम्बर आगमों की अर्धमागधी सर्वथा भिन्न है । पं० नाथूलाल शास्त्री 14-16 प्राकृत में नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपातों की रूप-रचना डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री 19-25 0076 प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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