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लेखक
वर्ष 10, अंक 2, जुलाई-सितम्बर 1998 ई० क्र०सं० आलेख का शीर्षक
पृष्ठ संख्या 1. विद्या विवादाय (संपादकीय)
डॉ० सुदीप जैन 5-8 2. युवकों को संदेश
आचार्यश्री विद्यानन्द मुनि 11-12 3. धर्मरूपी रथ को युवा ही वहन करेंगे मुनिश्री कनकोज्ज्वलनंदि 13-14 4. औचित्यपूर्ण उत्सव आगमसम्मत हैं
डॉ० सुदीप जैन 15-20 वास्तुविधान में मंगलवृक्ष
श्रीमती अमिता जैन 21-24 खारवेल शिलालेख कैसे प्रकाश में आया प्रो० राजाराम जैन 26-28 कलिंग
डॉ० रमेशचंद्र मजूमदार 29-30 8. शिक्षा की पर्याय : सरस्वती
श्रीमती रंजना जैन 31-33 9. भरतमुनि की दृष्टि में संस्कृत-रूपकों में डॉ० रमेशकुमार पाण्डेय 34-36
प्राकृत की अनिवार्यता 10. सम्यग्दर्शन का स्वरूप
प्रो० माधव रणदिवे 39-41 11. सिद्धक्षेत्रों में चरणचिह्नों का महत्त्व
पं० नाथूलाल शास्त्री 44-45 12. शौरसेनी प्राकृत का क्रमिक विकास
प्रो० गंगाधर पण्डा 46-48 13. प्राकृतभाषा में रचित 'रिट्ठ समुच्चय'
राजकुमार जैन 49-57 14. भरत-मंदिर इरिंगालकुडा
राजमल जैन 58-66 15. नारायण श्रीकृष्ण का जरे को क्षमादान पं० जयकुमार उपाध्ये 67-71 16. समयसार के पाठ, कं० 15
डॉ० सुदीप जैन 72-74 'भूतार्थ' और 'अभूतार्थ
75 18. प्राकृत पढ़ने की आवश्यकता क्यों?
डॉ० उदयचंद जैन 76-80 19. जैनदर्शन में शब्दार्थ-मीमांसा
स्व० डॉ० नेमिचंद्र शा० 81-83 20. कातंत्र-व्याकरण के कुछ सूत्र
84-85 11. शौरसेनी प्राकृत का उद्भव तथा विकास डॉ० रमेश चन्द जैन 86-92 22. आचार्य कुन्दकुन्द समाधि-संवत्
94 23. पुस्तक समीक्षा
1. महाबंधो (पुस्तक 1-2) 2. मयणजुद्ध कव्व
डॉ० सुदीप जैन 95-98 3. वैशाली के महावीर (बालकाव्य) ।
__ वर्ष 10, अंक 3-4, (संयुक्तांक) अक्तूबर-मार्च 1998-99 ई० क्र०सं० आलेख का शीर्षक
लेखक
पृष्ठ संख्या 1. अशोक जी शोकरहित थे (संपादकीय) डॉ० सुदीप जैन 5-10
17.
प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000
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