SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ “फलहोडी बड़ग्रामे पश्चिमभागे द्रोणगिरिशिखरे । निर्वाणगता: नमस्तेभ्यः । । 22 गुरुदत्तादि-मुनिंद्रा : “फलहोडी बड़गाम अनूप, पश्चिम दिशा द्रोणगिरिरूप । गुरुदत्तादि मुनीसुर जहाँ, मुक्ति गये वन्द नित तहाँ ।। " 2. आचार्य शिवार्य :- प्रथम शताब्दी के आचार्य शिवार्य की 'भगवती आराधना' नामक ग्रन्थ में कहा गया है : “हत्यिणापुर गुरुदत्त संबलियाली व दोणिमंतम्मि । उज्झतो अधियासिम पडिवण्णो उत्तमं अट्ठ ।।” आचार्य शिवार्य की उक्त गाथा से फलित होता है कि(क) गुरुदत्त मुनि हस्तिनापुर के रहने वाले थे। I (ख) 'संबलिथाली' की तरह अर्थात् जिस तरह एक बर्तन में उड़द की फलियाँ भरकर उसे आक के पत्रों से ढँककर और उसके मुख को नीचे की ओर करके और चारों ओर से आग लगाकर पकाया जाता है, उसीप्रकार रुई से लपेटकर मुनि गुरुदत्त के मस्तक पर आग लगा दी गई थी। उसे जली हुई अग्नि की वेदनारूपी उपसर्ग सहने कर ‘द्रोणीमंत' पर्वत से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। (ग) शिवार्य ने 'द्रोणगिरि शिखर' को 'द्रोणिमंत' कहा है। ऐसा कहकर भ्रम हो जाना स्वाभाविक है कि 'द्रोणिगिरि' और 'द्रोणिमंत' दोनों भिन्न हैं या अभिन्न ? – इस संबंध में आगे चिन्तन किया जायेगा । (घ) आचार्य शिवार्य ने आ० कुन्दकुन्द की तरह 'द्रोणिमंत पर्वत' की स्थिति का उल्लेख नहीं किया । ☐☐ 68 —— 3. आचार्य पूज्यपाद ई० सन् पांचवीं शताब्दी के सर्वमान्य आचार्य ने पूज्यपाद संस्कृत भाषा में भक्तियों की रचना की है। उन्होंने 'निर्वाण - भक्ति' में 'द्रोणिमति पर्वत'. से मुक्त हुए अनेक मुनिराजों को नमस्कार किया है। 1 4 पूज्यपाद 'द्रोणिमंत पर्वत' की स्थिति के संबंध में तो मौन हैं ही, वे इस संबंध में भी मौन हैं कि कौन-कौन से विशिष्ट मुनि किस प्रकार उक्त पर्वत से मुक्त हुए ? दूसरे शब्दों में कुन्दकुन्द और शिवार्य की तरह गुरुदत्त मुनि के उक्त पर्वत से मुक्त होने का उल्लेख न करके उन्होंने मात्र यहाँ से मुक्त होने वाले मुनियों को नमस्कार किया है। 4. आचार्य हरिषेण :― ई० सन् 10वीं शताब्दी के आचार्य हरिषेण के द्वारा ‘अनुष्टुप् छन्द’ में संरचित 'बृहत्कथा कोश" के 'गजकुमार कथानकम्' में बतलाया है कि हस्तिनापुर के राजा विजयदत्त और रानी विजया के पुत्र गुरुदत्त का विवाह लाटदेश के पूर्वोत्तर दिशा भाग में 'तोणिमद् भूधर" नामक पर्वत के समीप स्थित चन्द्रपुरी के राजा चन्द्रकीर्ति एवं चन्द्रलेखा की अभयमती नामक कन्या से हुआ था । चन्द्रपुरी के लोगों द्वारा प्राकृतविद्या + अप्रैल-जून 2000
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy