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________________ यह बतलाये जाने पर कि 'तोणिमत्' पर्वत की गुफा में स्थित भयंकर सिंह के उपद्रव से सभी लोग दु:खी हैं, गुरुदत्त सेना समुदाय के साथ तोणिमत् पर्वत गया और गुफा के मुख- पर्यन्त तृणादि भरकर उसमें आग लगा दी, जिसके फलस्वरूप वह सिंह गुफा के अन्दर मर गया और उसी नगर के एक ब्राह्मण के यहाँ कपिल नामक पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। गुरुदत्त राजा कालान्तर में जैन - दीक्षा लेकर मुनि हो गये । विहार करते हुए वे 'तोणिमत् पर्वत' पर आये। जब वे ध्यानस्थ थे, तो कपिल ने भ्रम से क्रोधित होकर पैरों से लेकर मस्तक - पर्यन्त रुई लपेटकर उनके मस्तक में आग लगा दी । उन्होंने उस उपसर्ग को धैर्यपूर्वक सहन किया; जिसके परिणामस्वरूप उन्हें केवलज्ञान हो गया। इस कथानक से स्पष्ट है कि — (i) गुरुदत्त कुरुवंशी हस्तिनापुर के राजा थे । (ii) वृहत्कथाकोश में पाँच स्थलों पर तोणिमत् पर्वत का उल्लेख हुआ, जो लाटदेश में चन्द्रपुरी के पश्चिम-दक्षिण में स्थित था । इसी पर्वत में स्थित गुफा में एक सिंह रहता था। (iii) गुरुदत्त ने मुनि - दीक्षा लेकर आग की दहन - वेदना रूप उपसर्ग सहन करके तोणिमत पर्वत पर केवली हुए थे । 5. प्रभाचन्द्र : - - डॉ० नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य के अनुसार ई० सन् 11वीं शताब्दी के आचार्य प्रभाचन्द्र ने संस्कृत भाषा में गद्यमय 'कथाकोश' की रचना की थी।' इसमें आई 'हस्तिनागपुर-गुरुदत्त' नामक कथा का कथानक 'वृहत्कथाकोश' का अनुगामी है । विशेषता यह है कि हरिषेण ने जिसे 'द्रोणिमद् पर्वत' कहा है, प्रभाचन्द्र ने उसे 'द्रोणीपर्वत' और 'द्रोणीमति पर्वत' कहा है । ' 10 6. ब्रह्मचारी श्री नेमिदत्त :- वि० की 16वीं शती के कवि भट्टारक मल्लिभूषण के शिष्य तथा नेमिनाथ, श्रीपालचरित, आराधनाकोश आदि 12 ग्रन्थों के रचयिता ब्र० मदत्त ने 'गुरुदत्त मुनि की कथा' नामक शीर्षक का कथानक 'वृहद्कथाकोश' की तरह है।" लेकिन इसमें 'द्रोणिपर्वत' के स्थान पर 'द्रोणीमान' पर्वत का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा शेष संबंधित तथ्य हरिषेण की तरह बतलाये गये हैं । तोणि, तोणिमत, द्रोणिमंत, द्रोणिमति, द्रोणी आदि शब्दों पर विचार करने से ज्ञात होता है कि इनमें केवल शब्दों का अंतर है, वास्तविक नहीं। पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री ने 'द्रोणिमंत' का अनुवाद ‘द्रोणगिरि’ किया है । इसीप्रकार डॉ० ए०एन० उपाध्ये ने 'तोणि' या 'तोणिमत' को 'द्रोणगिरि' का वाचक माना है । अतः उक्त शब्द 'द्रोणगिरि' से अभिन्न हैं । : 7. आचार्य श्रुतसागर सूरि वि०सं० 16वीं शताब्दी के बहुश्रुत विद्वान् आचार्य श्रुतसागर सूरि ने 'बोधपाहुड' की 27वीं गाथा की टीका में अन्य तीर्थ पर्वतों के साथ 'द्रोणीगिरि' पर्वत का उल्लेख करते हुए उसकी वन्दना करने की प्रेरणा प्रदान की है। श्रुतसागर सूरि ने 'द्रोणगिरि' को 'द्रोणीगिरि' कहा है; किन्तु आ० पूज्यपाद की तरह इससे संबंधित तथ्यों के संबंध में वे भी मौन हैं। प्राकृतविद्या�अप्रैल-जून '2000 ☐☐ 69
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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