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के सहारे पढ़ी जाने वाली लिपि की मदद ली जाती थी। चार्ल्स ने बतलाया इस लिपि में 12 बिंदु होते हैं। इन्हीं 12 बिंदुओं के माध्यम से संकेत दिये जाते हैं।
लुई को चार्ल्स बार्बियर की बातों से काफी राहत मिली। लुई ब्रेल ने उन बारह बिंदुओं के सहारे ब्रेल लिपि' बनाने की सोची, पर उन्हें यह हिचकिचाहट हुई कि 12 बिंदु बहुत ज्यादा होते हैं। काफी विचार करने के बाद लुई ब्रेल ने 6 बिंदुओं के माध्यम से लिपि बनाने का संकल्प किया। उन्होंने 6 बिंदुओं को 63 आकार दिये। लुई ब्रेल ने जब ब्रेल लिपि का आविष्कार किया, उस समय वे शिक्षक के रूप में काम कर रहे थे। उन्होंने सबसे पहले अपने विद्यालय में ही इस लिपि से बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। इस लिपि को मान्यता देने के लिए उन्होंने सरकार से आग्रह किया। इसके बाद ब्रेल में स्लेटें बननी शुरू हुईं, किताबें बनी। इसके बाद इस लिपि का धीरे-धीरे पूरे विश्व में प्रसार हुआ। लुई ब्रेल एक कर्मठ व्यक्ति थे। अपना मिशन पूरा करने में उन्होंने अपने स्वास्थ्य पर भी ध्यान नहीं दिया। फलस्वरूप उन्हें टी०बी० हो गयी। 1852 में लुईब्रेल का निधन हो गया।
एकेन्द्रियों की परिग्रह-संज्ञा 'वनशब्देन च धवादीनां'
-(आप्तपरीक्षा, स्वोपज्ञ 5, पृष्ठ 31) अर्थ:- वन शब्द से धव, पलाश आदि अनेक वृक्षादि पदार्थों के समूह का ज्ञान होता
'धव' वृक्ष निधि को पकड़ता है —ऐसी मान्यता है
'न' धवस्य अप्राप्तनिधिग्राहिण उपलम्भात् । अलाबू वलयादीनामप्राप्तवृत्तिवृक्षादि ग्रहणोपलम्भात् ।। -(धवला वग्ग०, 5/5/24, पृष्ठ 220)
अर्थ:- नहीं, क्योंकि धव वृक्ष अप्राप्त निधि को ग्रहण करता हुआ देखा जाता है और तूंबडी की लतादि अप्राप्त बाडी व वृक्ष आदि को ग्रहण करती हुई देखी जाती है। इससे शेष चार इन्द्रियाँ भी अप्राप्त अर्थ को ग्रहण कर सकती हैं, यह सिद्ध है।
-(धव कातन्त्र, पृष्ठ 354, द्वितीय खण्ड) यह एक विचित्र संयोग है कि वृक्ष एकेन्द्रिय होते हुए भी 'परिग्रहसंज्ञा' के प्रभाव से धन-सम्पत्ति को पकड़ता है। प्रतीत होता है कि संभवत: ऐसे ही संस्कारों के प्रभाव से संज्ञी-पंचेन्द्रिय 'त्यागी-व्रती' पदधारी होकर भी आज जीवों की परिग्रह को पकड़ने (संग्रह करने) की प्रवृत्ति छूट नहीं रही है। बल्कि संज्ञी पंचेन्द्रियत्व के प्रभाव से वे विरक्त-पद पर होते हुए भी परिग्रह-संग्रह के अवसर एवं बहाने खोजकर अपेक्षाकृत अन्य जीवों के अधिक परिग्रह-संचय में लगे हुए हैं।
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प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000