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"ज्ञानं पंगौ क्रिया चान्धे, नि:श्रद्धे नार्थकद्वयम् ।
ततो ज्ञान-क्रिया-श्रद्धामयं तत्पदकारणम् ।।" -(राजवार्तिक) अर्थात् पंगुजन में ज्ञान, अंधेजन में क्रिया, आलसीजन में विश्वास होने से पृथक्-पृथक् ये तीनों पुरुष दावानल से सुरक्षित नहीं हो सकते; किन्तु तीनों पुरुष एक साथ मिलकर पुरुषार्थ करें, तो दावानल से मुक्त हो सकते हैं। इसीप्रकार जो मानव सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एक साथ साधना करें, तो संसार के कर्मरूप दावानल से मुक्त हो सकते हैं, अन्यथा नहीं। रत्नत्रय का महत्त्व
“रत्नत्रयं तज्जननार्ति-मृत्यु-सर्पत्रयी-दर्पहरं नमामि । यद्भूषणं प्राप्य भवन्ति शिष्टा:, मुक्ते: विरूपाकृतयोप्यभीष्टाः ।।"
–(महाकवि हरिचन्द्रः, 'धर्मशर्माभ्युदय') तात्पर्य यह है कि जरा और मरणरूप सर्पत्रय के कष्टरूप विष के नाशक उस सफल रत्नत्रय को हम प्रणाम करते हैं कि जिस रत्नत्रयरूप आभूषण को धारण कर श्रेष्ठपुरुष तपस्वी, विरूप आकृतिवाले होने पर भी मुक्ति-लक्ष्मी के वरण के योग्य हो जाते हैं। अर्थात्-रत्नत्रय से मुक्ति की प्राप्ति होती है। रत्नत्रय सर्वधनों में प्रधान है
“न चौरहार्यं न च राजहार्य, न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं, रत्नत्रयं सर्वधनप्रधानम् ।।" __ सारांश:- भौतिकधन को चोर अपहरण कर सकते हैं, किन्तु इस रत्नत्रयरूपी धन को नहीं। भौतिकधन को राजा टैक्स आदि के द्वारा हरण कर सकता है, परन्तु रत्नत्रयरूपी धन को नहीं। भौतिकधन का भाई-बन्धु बटवारा कर सकते हैं, परन्तु रत्नत्रयरूपी धन का नहीं। भौतिकधन का वजन या भार हो सकता है, परन्तु रत्नत्रयरूपी धन का नहीं। भौतिकधन व्यय होने पर घटता है, परन्तु रत्नत्रय दूसरे को सिखाने आदि से बढ़ता है, इसलिये रत्नत्रयधन विश्व के सर्व धनों में प्रधान धन है। राष्ट्रपति महात्मा गांधी द्वारा रत्नत्रय का समर्थन
सत्य-अहिंसा-ब्रह्मचर्य ये रत्नत्रय आत्मकल्याण एवं विश्वकल्याण का मूलमंत्र है। Right belief, Right knowledge, Right conduct these together constitute the path to liberation. -(स्वतंत्रता के सूत्र, तत्त्वार्थसूत्र : आचार्य कनकनन्दि) श्रीमती इंदिरा गांधी (पूर्व प्रधानमंत्री) द्वारा रत्नत्रय का समर्थन __ दूरदृष्टि (श्रद्धा), पक्का इरादा (ज्ञान), कड़ा अनुशासन (सदाचरण) -ये तीन कर्तव्य राष्ट्र का कल्याण करते हैं एवं इनसे व्यक्ति की आत्मा पवित्र होती है।
प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000
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