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वैज्ञानिकों द्वारा रत्नत्रय का समर्थन ___ जर्मन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर अल्बर्ट आइंस्टीन— “दिल (श्रद्धा), दिमाग (ज्ञान) के स्वस्थ (सदाचरणयुक्त) रहने पर ही आत्मा महान् शान्ति का अनुभव करता है।" ___ “वह व्यक्ति 'नास्तिक' है, जो अपने आप में विश्वास नहीं करता। विश्वासपूर्वक ज्ञान आचरण को बनाता है।"
-(हिन्दुस्तान सन् 1963 जनवरी) "हैट (विश्वास), हार्ट (विज्ञान), हैण्ड (आचरण) — इन तीन स्वस्थ साधनों से ही मानव जीवन के कार्य बहुत अच्छे होते हैं।"
-(वैज्ञानिक टेनीसन) जिसप्रकार पिपरमेंट, अजवानफूल, कपूर ये तीनों युगपत् समान मात्रा में मिलकर 'अमृतधारा' को जन्म देते हैं और वह रोग से मुक्त करती है; उसीप्रकार सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्र ये तीन गुण युगपत् मिलकर अमृतधारा (मोक्षमार्ग) को दशति हैं।
-(विज्ञानपूर्ण भौतिक प्रयोग) उपसंहार
भौतिकरत्नों के आभूषणों को भवभव में इस मानव ने प्राप्त किये हैं; परन्तु अक्षय आत्मिक आभूषणों को आज तक प्राप्त नहीं किये। यद्यपि निश्चयदृष्टि से रत्नत्रयभूषण आत्मा में विद्यमान हैं, परन्तु मोह एवं अज्ञान के कारण इनका संकेत नहीं मिल रहा है। अत: इन रत्नों के खोजने की आवश्यकता प्रतीत होती है। तत्त्वार्थश्रद्धान (सम्यग्दर्शन), तत्त्वार्थज्ञान, (सम्यग्ज्ञान) और सदाचरण (सम्यक्चारित्र) को ही 'रत्नत्रय' कहा जाता है। इनका क्रम एवं निर्दोषत्व सिद्ध है। दृष्टान्त द्वारा रत्नत्रय का एकत्व सिद्ध है। वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा आत्मिक रत्नत्रय का समर्थन होता है। रत्नत्रय का मूल्यांकन – आत्मा से परमात्मा की उपलब्धि है।
"सम्मदसणणाणं चरणं मोक्खस्स कारणं जाणे। ववहारा णिच्छयदो तत्तियमइयो णिओ अप्पा ।।"
___ -(आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव : दव्वसंगहो, गाथा 39) अर्थात् व्यवहारनय से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र –इन तीनों का समीकरण मोक्ष का कारण (मार्ग) है और निश्चयनय से सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप अखण्ड स्वभावात्मक आत्मा ही मोक्ष है।
"रयणत्तयं ण वट्टदि, अप्पाणं मुयत्तु अण्णदवियम्हि । तम्हा तत्तियमइयो, होदि हु मोक्खस्स कारणं आदा।।"
__ -(वही, गाथा 40) अर्थ:- निश्चय दृष्टिकोण से रत्नत्रयभाव आत्मा को छोड़कर अन्य पाँच द्रव्यों (पुद्गल, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाश, काल) में नहीं है। इस विशेष युक्ति से उक्त रत्नत्रय-स्वभाव आत्मा ही मोक्ष कहने के योग्य है।
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प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000